पाकिस्तान के कराची शहर में सिंधुदेश की मांग को लेकर हुए प्रदर्शनों ने हालात को हिंसक बना दिया। सिंधी कल्चर डे के मौके पर हजारों लोग सड़कों पर उतरे और अलग सिंधुदेश की मांग तेज़ होती गई। प्रदर्शनकारियों के बढ़ते आक्रोश ने कराची में पथराव, तोड़फोड़ और पुलिस से टकराव को जन्म दिया, जिसके बाद शहर में तनाव फैल गया।
इन प्रदर्शनों का नेतृत्व जिए सिंध मुत्तहिदा महाज़ (JSSM) नामक संगठन ने किया। भीड़ ने ‘आजादी’ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाए, जो लंबे समय से सिंधी राष्ट्रवादी दलों में मौजूद अलगाववादी भावनाओं को फिर से सतह पर ले आए। दौरान प्रशासन ने रैली के निर्धारित मार्ग को बदलते ही स्थिती और बिगड़ी। इससे प्रदर्शनकारियों में नाराज़गी बढ़ी और भीड़ के कुछ हिस्सों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। कई जगहों पर सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया।
स्थानीय मीडिया के मुताबिक, कम से कम 45 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 5 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। सरकार ने पुलिस को सभी तोड़फोड़कर्ताओं की पहचान कर सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है। सिंधी संगठनों ने लंबे समय से पाकिस्तान पर राजनीतिक दमन और मानवाधिकार उल्लंघनों का आरोप लगाया है। इस साल की शुरुआत में JSSM के निर्वासित चेयरमैन शफ़ी बुरफ़त ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की थी कि वह सिंधुदेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे।
JSSM ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी समर्थन मांगा था, यह दावा करते हुए कि भारत और सिंध के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध गहरे हैं। संगठन का आरोप है कि पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियां सिंधी कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ जबरन गायब करने, यातना और फर्ज़ी मुठभेड़ों जैसी कार्रवाइयों में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी कानूनों का दुरुपयोग कर सिंधुदेश आंदोलन को निशाना बनाया जा रहा है।
हाल के दिनों में इस मुद्दे ने राजनीतिक बहस में नई जगह बना ली है। एक पाकिस्तानी चैनल पर चर्चा के दौरान दावा किया गया कि MQM प्रमुख अल्ताफ़ हुसैन ने पूर्व गृह मंत्री जुल्फ़िकार मिर्ज़ा से कहा था कि 18वें संशोधन के बाद सिंधुदेश का कार्ड अब हमारे हाथ में है।
भारत में भी सिंधुदेश का मसला तब सुर्खियों में आया था जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भविष्य में सिंध भारत में लौट सकता है। उन्होंने कहा कि सिंध भारत का सांस्कृतिक हिस्सा हमेशा रहेगा और 1947 का निर्णय कई सिंधी हिंदुओं ने दिल से स्वीकार नहीं किया
सिंध, जो 1947 में पाकिस्तान में शामिल हुआ, प्राचीन काल में महाभारत के अनुसार सिंधुदेश के नाम से जाना जाता था और सिंधु नदी के किनारे बसी सभ्यता से जुड़ा है। अलग सिंधुदेश की राजनीतिक मांग पहली बार 1967 में उठी, जब GM सैय्यद और पीर अली मोहम्मद राशदी ने इसका नेतृत्व संभाला। 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के बाद यह आंदोलन और तेज़ हुआ, जिसने सिंध की सांस्कृतिक, भाषाई और ऐतिहासिक पहचान पर बल दिया। महत्वपूर्ण बात यह है कि सिंध के भीतर भारत में विलय की मांग नहीं है, बल्कि मांग या तो अधिक स्वायत्तता या स्वतंत्र राष्ट्र सिंधुदेश की है।
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