इस अध्ययन का नेतृत्व डॉ. डॉमिनिक ट्रान ने किया। उन्होंने बताया कि वसायुक्त और मीठा खाना खाने की आदत से दिमाग की कुछ क्षमताएं कमजोर हो सकती हैं, खासकर वह हिस्सा जो दिशा और याददाश्त से जुड़ा होता है।
अच्छी बात यह है कि यह असर स्थायी नहीं होता। डॉ. ट्रान के मुताबिक अगर हम अपना खानपान सुधार लें, तो हमारा दिमाग फिर से अच्छा काम करने लगता है। जैसे कि किसी नई जगह रास्ता पहचानना या नया रास्ता याद रखना।
इस अध्ययन में 18 से 38 साल की उम्र के 55 विश्वविद्यालय छात्रों को शामिल किया गया। उनसे पूछा गया कि वे कितना फैट और चीनी वाला खाना खाते हैं। फिर उनका वजन, याद रखने की क्षमता और दिमागी दिशा-ज्ञान की परीक्षा ली गई।
इस परीक्षण में उन्हें वर्चुअल रियलिटी की एक भूलभुलैया में रखा गया, जहां उन्हें एक खजाने की पेटी का पता लगाना था। प्रयोग में लोगों को छह बार इस खजाने की पेटी ढूंढनी थी। भूलभुलैया के चारों ओर कुछ खास चीजें थीं, जिनकी मदद से लोग अपना रास्ता याद रख सकते थे। हर बार जब प्रयोग किया गया, तो शुरू करने की जगह और खजाने की पेटी की जगह एक ही थी।
अगर प्रतिभागी 4 मिनट के अंदर खजाना ढूंढ लेते, तो अगला राउंड शुरू हो जाता। अगर वे इतने समय में खजाना नहीं ढूंढ पाए, तो उन्हें तुरंत खज़ाने की जगह पर पहुँचा दिया गया और अगले राउंड से पहले उस जगह को अच्छी तरह से देखने के लिए 10 सेकंड दिए गए।
जिन छात्रों ने कम फैट और कम शुगर वाला खाना खाया था, उन्होंने खजाने का स्थान ज्यादा सही ढंग से पहचाना। डॉ. ट्रान ने बताया यह देखा गया कि ज्यादा चीनी और फैट खाने वाले छात्रों का प्रदर्शन कमजोर रहा। इससे यह बात और पक्की हो जाती है कि अगर हम अपने खानपान में सुधार करें, तो हम अपने दिमाग को तेज और स्वस्थ बनाए रख सकते हैं।
वैज्ञानिक पहले से ही जानते हैं कि ज़्यादा फैट और शुगर खाना मोटापा, हार्ट की बीमारी और कुछ कैंसर की वजह बन सकता है। अब यह भी साफ हो रहा है कि यह आदत दिमाग को भी नुकसान पहुंचाती है और वह भी कम उम्र में।
डॉ. ट्रान ने कहा, “यह शोध बताता है कि अच्छा खानपान सिर्फ शरीर ही नहीं, दिमाग की सेहत के लिए भी जरूरी है। खासकर युवावस्था में, जब हमारा दिमाग सबसे अच्छा काम करता है।”
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