प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हाल ही में हुई फोन पर बातचीत की सराहना करते हुए भारत के वरिष्ठ पूर्व राजनयिक के.पी. फैबियन ने एक अहम टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप बार-बार भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश इसलिए करते हैं क्योंकि वह ‘शांति का नोबेल पुरस्कार’ जीतना चाहते हैं।
फैबियन ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में कहा, “यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच संवाद हुआ, भले ही वे आमने-सामने नहीं मिले। प्रधानमंत्री ने उन्हें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जानकारी भी दी। हालांकि, अमेरिका की ओर से भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता या किसी ट्रेड डील पर कोई चर्चा नहीं हुई।”
उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप की सोच को समझने की जरूरत है। “मेरे हिसाब से ट्रंप बार-बार दावा करेंगे कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध टालने में भूमिका निभाई। यह उनका तरीका है खुद को ‘शांति वाहक’ के रूप में दिखाने का। असल में, वह नोबेल शांति पुरस्कार के आकांक्षी हैं,” फैबियन ने कहा।
इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध को लेकर फैबियन ने चिंता जाहिर की। उन्होंने बताया कि इजरायल में करीब 25,000 और ईरान में 10,000 भारतीय नागरिक रहते हैं। “विदेश मंत्रालय को बहुत पहले ही इन्हें वहां से निकाल लेना चाहिए था। अब देर से ही सही, रेस्क्यू का काम शुरू हो गया है,” उन्होंने कहा।
फैबियन ने यह भी कहा कि भारत के लिए इजरायल और ईरान दोनों ही मित्र राष्ट्र हैं, ऐसे में भारत को अपनी प्रतिक्रिया सोच-समझकर देनी चाहिए। “इस युद्ध का असर सीधे-सीधे वैश्विक बाजार और खासतौर पर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा। भारत जैसे देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें इससे प्रभावित हो सकती हैं,” उन्होंने कहा।
पूर्व राजनयिक केपी फैबियन का बयान इस ओर इशारा करता है कि डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश कूटनीतिक से ज्यादा व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और अंतरराष्ट्रीय छवि सुधारने की कोशिश हो सकती है। भारत को इन प्रयासों को अनदेखा कर, अपने रणनीतिक हितों के अनुसार संतुलित और विवेकपूर्ण प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
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