अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उनके विवादित ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ नीति को लेकर बड़ा झटका लगा है। मैनहट्टन स्थित संघीय व्यापार अदालत ने बुधवार (28 मई) को इस नीति पर रोक लगाते हुए कहा कि ट्रंप ने संविधान द्वारा तय सीमाओं का उल्लंघन किया है और अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) के अंतर्गत मिली शक्तियों से आगे जाकर कार्य किया।
ट्रंप प्रशासन ने 2 अप्रैल को अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों पर 10% के आधार टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों पर, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा अधिक है, उन पर अधिक शुल्क लगाया गया। इस निर्णय से विश्व भर के वित्तीय बाजारों में हलचल मच गई और कुछ देशों के लिए टैरिफ पर अस्थायी रोक लगानी पड़ी।
ट्रंप की कानूनी टीम ने अदालत में दलील दी कि ये टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े थे और साउथ एशिया में, खासकर भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच, रणनीतिक हस्तक्षेप के रूप में उपयोग किए गए। उनका कहना था कि ट्रंप की कर धमकियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए युद्धविराम समझौते में भूमिका निभाई, जो 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हुआ था।
हालांकि भारत ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि ट्रंप प्रशासन का इस संघर्ष में कोई हस्तक्षेप नहीं था, और पाकिस्तान ने भारत से स्वयं सैन्य कार्रवाई न करने का अनुरोध किया था।
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने साफ किया कि,”कांग्रेस ने IEEPA के तहत राष्ट्रपति को असीमित शक्तियां नहीं दी हैं। संविधान के अनुसार, विदेश व्यापार को विनियमित करने का विशेष अधिकार कांग्रेस के पास है और यह अधिकार राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों से सीमित नहीं होता।”
अदालत ने यह भी कहा कि उनका निर्णय टैरिफ नीति की बुद्धिमत्ता या प्रभावशीलता पर नहीं, बल्कि कानूनी आधार पर आधारित है। यह फैसला दो अलग-अलग मुकदमों के जवाब में आया – पहला, ‘लिबर्टी जस्टिस सेंटर’ द्वारा दायर किया गया जिसमें पांच छोटे अमेरिकी व्यवसायों का प्रतिनिधित्व किया गया था, और दूसरा 13 अमेरिकी राज्यों द्वारा दायर किया गया। इन याचिकाओं में कहा गया था कि टैरिफ बिना उचित प्रक्रिया के लगाए गए हैं और इससे व्यापार संचालन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
वर्तमान में, अमेरिका में टैरिफ विरोधी कम से कम पांच अतिरिक्त कानूनी मामले लंबित हैं। हालांकि अदालत ने टैरिफ पर रोक लगा दी है, ट्रंप प्रशासन ने तत्काल अपील दर्ज कर दी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्व राष्ट्रपति इस कानूनी लड़ाई को आगे ले जाने के लिए तैयार हैं।
ट्रंप ने पहले संकेत दिया था कि वह चीन के साथ व्यापार संबंधों को स्थिर करने के लिए कुछ टैरिफ अस्थायी रूप से कम करने पर सहमत हैं, और चीन के साथ 90 दिनों की टैरिफ राहत पर भी सहमति बनी थी।
इस ताजा कानूनी झटके से ट्रंप के आगामी चुनावी अभियान और वैश्विक व्यापार रणनीति दोनों को असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत का यह निर्णय अमेरिका में राष्ट्रपति की आर्थिक शक्तियों की सीमाओं को दोबारा परिभाषित कर सकता है।
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