भारत और पाकिस्तान के बीच तेज़ी से बढ़ते सीमा तनाव के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने हस्तक्षेप करते हुए पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से फोन पर बात की। इस बातचीत में रुबियो ने स्पष्ट तौर पर कहा कि तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों को रचनात्मक कदम उठाने चाहिए और अमेरिका इस प्रक्रिया में सहयोग देने को तैयार है।
अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने यह जानकारी साझा करते हुए बताया कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष टालने के सभी संभावित रास्ते तलाशने के पक्ष में है। विदेश मंत्री रुबियो ने इस दौरान “रचनात्मक वार्ता शुरू करने” की बात कही और तनाव घटाने के लिए अमेरिका की कूटनीतिक मदद की पेशकश भी की।
यह वार्ता ऐसे समय में हुई है जब पाकिस्तान की ओर से लगातार भारतीय क्षेत्रों पर ड्रोन और गोलीबारी के जरिए हमले किए जा रहे हैं, जिनका भारतीय सेना मुंहतोड़ जवाब दे रही है। एक ओर सीमा पर सीजफायर उल्लंघनों की घटनाएं बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक और सैन्य दबाव भी तेज हो गया है।
इससे पहले व्हाइट हाउस ने भी चिंता जताई थी। प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने बताया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव जल्द से जल्द कम हो। उनके अनुसार,”राष्ट्रपति ट्रंप के दोनों देशों के नेताओं से पुराने और अच्छे संबंध हैं। वह मानते हैं कि यह तनाव दशकों पुराना है, लेकिन इसे टाला जा सकता है।”
रुबियो, जो वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अस्थायी भूमिका भी निभा रहे हैं, ने बीते गुरुवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से भी बात की थी। इन चर्चाओं में भी अमेरिका की वही लाइन दोहराई गई—”तनाव घटाओ, संवाद बढ़ाओ।”
गौरतलब है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की थी। इसके बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और नागरिक ठिकानों तक को निशाना बना रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है।
मार्को रुबियो की अपील इस कूटनीतिक पटल पर तब आती है जब भारत के भीतर भी इस बात पर चर्चा तेज़ हो रही है कि अमेरिका की चिंता वास्तव में निष्पक्ष है या वह पाकिस्तान के साथ अपने सामरिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ‘दोनों पक्षों’ को बराबरी से जिम्मेदार ठहराने की रणनीति अपना रहा है।
अब देखना यह है कि क्या अमेरिका का यह ‘शांतिदूत’ रुख महज़ औपचारिकता भर है या वाकई वह पाकिस्तान की सैन्य हरकतों को रोकने के लिए ठोस दबाव बनाएगा।
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