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‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर फिल्म की घोषणा के बाद फंसे निर्माता, माफी में लपेटा संवेदनशीलता का सवाल

लोगों का कहना है कि जब सीमा पर हालात गंभीर हों, जब जवान हर पल दुश्मन से दो-चार हो रहे हों, तब किसी सैन्य ऑपरेशन पर फिल्म बनाने की घोषणा करना बेहद असंवेदनशील और अवसरवादी कदम है।

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पाकिस्तान के खिलाफ भारत के सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने देशभर में जोश भर दिया है, लेकिन इस राष्ट्रवादी भावना की लहर में जब फिल्म निर्माता निक्की भगनानी और निर्देशक उत्तम माहेश्वरी ने इसी नाम से फिल्म बनाने की घोषणा की, तो वह बुरी तरह घिर गए। सोशल मीडिया पर इनकी आलोचना इतनी तीव्र थी कि अब निर्माताओं को माफी मांगनी पड़ी है। पर सवाल यह है कि क्या देश की ज्वलंत सैन्य कार्रवाई को तुरंत पर्दे पर लाने की होड़ संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की बलि तो नहीं ले रही?

निर्माताओं ने इंस्टाग्राम स्टोरीज़ में एक लंबा माफीनामा साझा किया, जिसमें कहा गया “हाल ही में भारतीय सशस्त्र बलों के वीरतापूर्ण प्रयासों से प्रेरित ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर आधारित एक फिल्म की घोषणा करने के लिए मैं दिल से माफी चाहता हूं। हमारा उद्देश्य कभी भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने या भड़काने का नहीं था।”

उन्होंने यह भी सफाई दी कि फिल्म सिर्फ पैसा या शोहरत कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह सैनिकों के साहस और नेतृत्व के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। “यह प्रोजेक्ट हमारे राष्ट्र के प्रति गहरे सम्मान और प्रेम से जन्मा है, न कि प्रसिद्धि या धन कमाने के लिए।”

हालांकि, यह तर्क सोशल मीडिया यूजर्स को कतई रास नहीं आया। लोगों का कहना है कि जब सीमा पर हालात गंभीर हों, जब जवान हर पल दुश्मन से दो-चार हो रहे हों, तब किसी सैन्य ऑपरेशन पर फिल्म बनाने की घोषणा करना बेहद असंवेदनशील और अवसरवादी कदम है। लोगों ने पूछा कि क्या फिल्म निर्माता इतने बेसब्र हैं कि उन्हें शहीदों के सम्मान का भी इंतजार नहीं?

साफ है कि निर्माता ने पोस्टर लॉन्च कर बाज़ार में लहर पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस प्रयास में जनभावनाओं और देश की संवेदनशील स्थिति को नज़रअंदाज़ कर दिया। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है; यह एक वास्तविक सैन्य कार्रवाई है जिसमें जवानों की जान दांव पर लगी है। ऐसे में फिल्म की घोषणा को लेकर नैतिकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

भले ही निर्माता ने पीएम मोदी और सेना की तारीफ करते हुए अपनी मंशा साफ करने की कोशिश की हो, लेकिन यह बात अब बहस के घेरे में है कि क्या देशभक्ति पर फिल्म बनाने का सही वक्त युद्ध की आग में झुलसते जवानों के ठीक बीच होता है?

संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और संयम—एक सच्चे राष्ट्रप्रेम की यही पहचान है। और जब बात देश की सुरक्षा और शहीदों के सम्मान की हो, तो हर रचनात्मक कदम को मुनाफे से पहले विवेक के तराजू पर तौलना ज़रूरी हो जाता है।

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