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पाकिस्तान पर भारत के विजय की कहानी: बांग्लादेश मुक्ति संग्राम

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लेखक: प्रशांत कारुलकर

9 महीने के लंबे और कठिन संघर्ष के बाद, भारतीय सेना ने आज बांग्लादेश के पूर्वी कमान्ड को पराजित कर १९७१ में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। इस निर्णायक क्षण ने न केवल पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को विजय दिलाई, बल्कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। पाकिस्तानपर भारत की इसी स्वर्णीम जीत को हम विजय दिवस के रुप में मनाते है।

भारतीय सेना का पूर्वी कमान्ड, जिसे विशेष रूप से इस अभियान के लिए गठित किया गया था, ने तीनों सेनाओं – थलसेना, वायुसेना और नौसेना – के एकीकृत प्रयासों के साथ पाकिस्तानी सेना पर निर्णायक हमले किए। तेज गति से अभियान चलाते हुए भारतीय बलों ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा सुनिश्चित की और पूर्वी पाकिस्तान में गहराई से प्रवेश किया। जेसोर, खुलना और ढाका जैसे प्रमुख शहरों को तेजी से मुक्त कराया गया।

वायुसेना ने पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों और हवाई अड्डों पर निर्णायक हवाई हमले किए, जिससे उनकी सैन्य क्षमता को काफी कमजोर किया गया। नौसेना ने भी पाकिस्तानी जहाजों को खाड़ी में ही रोक दिया, जिससे उनका पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य बल भेजने का रास्ता अवरुद्ध हो गया।

जमीनी लड़ाई में भारतीय सैनिकों का दृढ़ संकल्प और बांग्लादेशी मुक्ति-योद्धाओं का अथक समर्थन निर्णायक साबित हुआ। पाकिस्तानी सेना हतोत्साहित होकर और भारतीय बलों के लगातार हमलों का सामना न कर पाते हुए अंततः 16 दिसंबर को ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया।

पूर्वी कमान्ड की विजय ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को एक निर्णायक मोड़ दिया। पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद, एक नए राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश का उदय हुआ। इस ऐतिहासिक जीत ने भारत और बांग्लादेश के बीच मित्रता का एक मजबूत आधार भी स्थापित किया।

जब भी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की बात होती है, एक नाम हमेशा गौरव से लिया जाता है – लेफ्टिनेंट जनरल जग्जीत सिंह ऑरोरा। पूर्वी कमान्ड के प्रमुख के रूप में, जनरल ऑरोरा ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में एक निर्णायक भूमिका निभाई और पाकिस्तानी सेना को ऐतिहासिक पराजय दी।

जनरल ऑरोरा ने अपने सैन्य कौशल और दूरदृष्टि के जरिए युद्ध की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया। उन्होंने तेज गति से अभियान चलाते हुए भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना पर निर्णायक हमले करने का निर्देश दिया। सिलीगुड़ी कॉरिडोर की रक्षा के बाद उन्होंने जेसोर, खुलना और अंततः ढाका तक का सफर तय किया, प्रमुख शहरों को मुक्त कराते हुए पाकिस्तानी सेना को कमजोर बनाया।

जनरल ऑरोरा ने तीनों सेनाओं के समन्वय पर विशेष ध्यान दिया। वायुसेना ने पाकिस्तानी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए, जबकि नौसेना ने उन्हें समुद्री रास्ते से सैन्य बल भेजने से रोक दिया। यही नहीं, उन्होंने बांग्लादेशी मुक्ति-योद्धाओं का भी भरपूर सहयोग लिया, जिससे भारतीय बलों का मनोबल बढ़ा और स्थानीय भौगोलिक ज्ञान का फायदा मिला।

जनरल ऑरोरा ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए, जैसे कि अचानक आक्रमण और पाकिस्तानी सेना को तीन तरफ से घेरने की योजना। उन्होंने संचार व्यवस्था को बाधित किया और पाकिस्तानी सेना के मनोबल को गिराया। उनके नेतृत्व में भारतीय बलों ने अभूतपूर्व वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया।

16 दिसंबर 1971 को, जनरल ऑरोरा के कुशल नेतृत्व में, भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तानी सेना को घुटने पर ला दिया। अंततः, पाकिस्तानी सेनापति ने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा।

लेफ्टिनेंट जनरल जग्जीत सिंह ऑरोरा की बांग्लादेश की स्वतंत्रता में अविस्मरणीय भूमिका है। उनके सैन्य कौशल, दूरदृष्टि और नेतृत्व ने भारत को एक निर्णायक जीत दिलाई और बांग्लादेश को स्वतंत्रता का उपहार दिया। उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा और वह बांग्लादेश के इतिहास में एक सच्चे नायक के रूप में सम्मानित रहेंगे।

विजय दिवस भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए गौरव का दिन है। भारतीय सेना के वीरतापूर्ण प्रदर्शन और मुक्ति-योद्धाओं के बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा। यह विजय भारत के विदेश नीति के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है और दोनों देशों के बीच मित्रता के बंधन को मजबूत करने का काम करती है।

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