आजकल लोग तेज़ी से ठीक होने की चाह में हर्बल या आयुर्वेदिक दवाओं का अत्यधिक सेवन करने लगे हैं। उनका मानना है कि आयुर्वेदिक औषधियों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, इसलिए इन्हें किसी भी मात्रा में लिया जा सकता है। लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक यह सोच बेहद खतरनाक और भ्रामक है।
आयुर्वेद के अनुसार, किसी भी औषधि का सेवन केवल निर्धारित मात्रा, समय और अवधि में ही करना चाहिए, और यह कार्य एक योग्य एवं पंजीकृत आयुष चिकित्सक की देखरेख में होना आवश्यक है। आयुर्वेद एक समग्र चिकित्सा पद्धति है, जो केवल रोग के इलाज तक सीमित नहीं है, बल्कि शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने पर भी केंद्रित है।
आयुर्वेद में हर व्यक्ति की प्रकृति (दोष), जीवनशैली, आहार और पर्यावरण के अनुसार औषधि तय की जाती है। यही वजह है कि किसी भी दवा की मात्रा, सेवन का समय और अवधि बेहद सावधानीपूर्वक निर्धारित की जाती है। यदि इन नियमों की अनदेखी की जाए तो लाभ के बजाय हानि हो सकती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि कुछ आयुर्वेदिक औषधियों में धातु या खनिज तत्व होते हैं, जो सही मात्रा में लेने पर बेहद प्रभावी साबित होते हैं। लेकिन इनका अधिक सेवन लिवर, किडनी या अन्य अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसी तरह, कुछ जड़ी-बूटियों का अत्यधिक सेवन एलर्जी, अपच, रक्तचाप असंतुलन या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
आयुर्वेद यह स्पष्ट रूप से कहता है कि “प्राकृतिक या हर्बल” का अर्थ यह नहीं है कि दवा हर मात्रा में सुरक्षित है। किसी भी दवा का अधिक सेवन शरीर की जैविक प्रक्रिया को असंतुलित कर सकता है।
आयुष विशेषज्ञों के अनुसार, हर व्यक्ति की आयु, वजन, प्रकृति और रोग की गंभीरता के आधार पर ही औषधि की मात्रा और सेवन अवधि तय की जानी चाहिए। इसलिए स्वयं दवा लेना या किसी और के अनुभव के आधार पर मात्रा बढ़ाना बेहद जोखिमपूर्ण हो सकता है।
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