पहली बार सेना ने ऑपरेशन पवन के नायकों को किया सम्मानित

श्रीलंका में भारत के साहसिक मिशन की कहानी

पहली बार सेना ने ऑपरेशन पवन के नायकों को किया सम्मानित

operation-pawan-heroes-honoured-first-time

भारतीय सेना ने मंगलवार (25 नवंबर) को पहली बार औपचारिक रूप से ऑपरेशन पवन के हुतात्मा वीरों को श्रद्धांजलि दी, यह एक ऐसा अभियान था जिसने 1987 में श्रीलंका के गृहयुद्ध के बीच भारत के लिए सबसे कठिन और साहसिक विदेशी सैन्य मिशनों में इतिहास रचा था। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ध्वजवंदन और पुष्पांजलि अर्पित कर इस स्मरण दिवस का नेतृत्व किया। उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह, जिन्होंने स्वयं बतौर युवा अधिकारी ऑपरेशन पवन में हिस्सा लिया था, भी उनके साथ मौजूद रहे।

ऑपरेशन पवन 7 अक्टूबर 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने भारत–श्रीलंका समझौते के तहत भारतीय शांति सेना (IPKF) को श्रीलंका भेजने से शुरू हुआ था। इसका उद्देश्य उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में तमिलों को स्वायत्तता देने की प्रक्रिया को लागू करना, शांति स्थापित करना और विद्रोही समूहों, विशेष रूप से लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE), को हथियार डालने के लिए बाध्य करना था। लेकिन समझौते में शामिल न किए गए LTTE ने अपने हथियार सौंपने से इनकार कर दिया और संघर्ष शुरू हो गया।

जाफना प्रायद्वीप में LTTE को निष्क्रिय करने, उनके संचार नेटवर्क रेडियो और टीवी केंद्रों पर नियंत्रण करने और शीर्ष कमांडरों को पकड़ने का दायित्व IPKF पर था। 10 अक्टूबर को 91वीं ब्रिगेड ने जाफना में घुसपैठ शुरू की और 11 अक्टूबर की रात एयरबोर्न असॉल्ट के जरिए LTTE मुख्यालय को निशाना बनाया गया। लेकिन रेडियो संचार लीक होने से ऑपरेशन को भारी नुकसान झेलना पड़ा, विशेष रूप से सिख रेजिमेंट को।

इसके बावजूद, भारतीय जवानों ने भारी हताहतों के बीच लगातार आगे बढ़ते हुए 26 अक्टूबर तक जाफना शहर पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। मगर LTTE नेतृत्व जंगलों में छिप गया और उसका सर्वोच्च नेता वेलुपिल्लै प्रभाकरन गिरफ्तारी से बच निकला। कई सैनिकों के शव संघर्ष की भयंकरता के कारण नहीं मिल पाए।

इसी अभियान में मेजर आर. परमेश्वरन ने अदम्य साहस दिखाते हुए 25 नवंबर 1987 को अपनी टुकड़ी को सुरक्षित रखते हुए आतंकियों से हाथापाई के दौरान छलनी होने के बावजूद एक चरम आतंकी को मार गिराया। अपने अंतिम सांस तक वे अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

ऑपरेशन पवन के दौरान सैकड़ों भारतीय सैनिक वीरगती को प्राप्त हुए और 1,000 से अधिक घायल हुए। समय के साथ श्रीलंका में भारतीय उपस्थिति को लेकर राजनीतिक विरोध बढ़ता गया। अंततः 24 मार्च 1990 को IPKF की वापसी पूरी हुई।

अभियान को 36 वर्षों तक भारत में औपचारिक मान्यता नहीं मिली, जबकि श्रीलंका में कोलंबो में IPKF स्मारक मौजूद है। लेकिन आज, भारतीय सेना ने पहली बार समर्पित कार्यक्रम के माध्यम से इन शहीदों के बलिदान को अधिकारिक सम्मान दिया है, वे सैनिक जिन्होंने विदेशी धरती पर भारत के दायित्व और मानवीय प्रतिबद्धता के लिए प्राण न्योछावर कर दिए।

यह भी पढ़ें:

केंद्र ने हिंदी थोपने की कोशिश की, तो तमिलनाडु भाषा युद्ध के लिए तैयार : उदयनिधि स्टालिन

रोजाना करें नौकासन, जानें अभ्यास का सही तरीका और लाभ

पाकिस्तानी हमले में मासूमों की मौत पर बिफरा अफगानिस्तान, बोला,’ सही समय पर देंगे जवाब’

Exit mobile version