यह धारणा कि “ज्यादा वोटिंग सत्ता बदलती है”, बिहार में टूटती दिख रही है। शुरुआती रुझानों और एग्जिट पोल्स का संकेत साफ है| ‘निश्चय नीतीश’ का भरोसा, ‘तेजस्वी के परिवर्तन के जोश’ पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। एनडीए एक बार फिर सत्ता में लौटने की दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरणों में 65 से 70 प्रतिशत तक की रिकॉर्ड वोटिंग हुई थी। सियासी पंडितों ने इसे “बदलाव की लहर” बताया था, पर अब तस्वीर उलटती दिख रही है। यह सिर्फ हवा या लहर नहीं, बल्कि एनडीए का मजबूत बूथ मैनेजमेंट और संगठनात्मक रणनीति थी, जिसने एंटी-इंकम्बेंसी को प्रो-इंकम्बेंसी में बदल दिया।
तेजस्वी यादव की पार्टी राजद ने जोरदार चुनाव लड़ा, पर महागठबंधन के अन्य घटक दलों का प्रदर्शन उतना सशक्त नहीं रहा। वहीं अमित शाह की रणनीति और एनडीए का प्रबंधन निर्णायक साबित होता दिख रहा है।
एनडीए ने प्रवासी बिहारी वोटरों को गांव लौटाने से लेकर मुस्लिम महिलाओं तक को सुरक्षा और योजनाओं की निरंतरता का भरोसा दिलाया, जिससे साइलेंट वोटर एनडीए की ओर झुके।
पटना की गलियों और चाय की दुकानों में चर्चाएं यही हैं कि “सरकार हवा से नहीं, वोटर की सेटिंग से बनती है।” यही ‘सेटिंग’ एनडीए के पक्ष में दिख रही है। महिलाओं और बुजुर्गों का वर्ग नीतीश कुमार के “निश्चय मॉडल” पर भरोसा दिखा रहा है। विकास और स्थिरता की चाह ने युवाओं के जोश पर भारी पड़ती दिख रही है।
तेजस्वी यादव ने युवाओं को नौकरी और बदलाव का सपना दिखाया, पर उसे वोट में बदलने में सफलता नहीं मिली। वहीं सीमांचल में मुस्लिम मतदाताओं की रिकॉर्ड भागीदारी के बावजूद, गैर-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण एनडीए के पक्ष में गया।
14 नवंबर को नतीजे स्पष्ट होंगे, लेकिन एग्जिट पोल का रुझान कहता है कि इस बार भी “भरोसे का नीतीश” बिहार की राजनीति में निर्णायक चेहरा बने हुए हैं।
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