बॉम्बे हाईकोर्ट ने शनिवार (13 सितंबर)को महाराष्ट्र सरकार से सवाल किया कि क्या हाल ही में जारी मराठवाड़ा के मराठों को कुणबी प्रमाणपत्र देने वाला जीआर (GR) पहले से लागू 10% मराठा आरक्षण (SEBC) को प्रभावित करेगा। अदालत ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेस (SEBC) एक्ट, 2024 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
जस्टिस रविंद्र घुगे, एन.जे. जमादार और संदीप मर्ने की तीन जजों की विशेष पीठ ने राज्य सरकार से पूछा,“हाल ही का जीआर और पहले से लागू SEBC कोटा क्या दोनों एकसाथ जारी रहेंगे? हालिया आंदोलन तो मराठों को ओबीसी में शामिल करने के लिए हुआ था। अब कुछ मराठा ओबीसी में और कुछ SEBC में… क्या दोनों कोटा साथ चल सकते हैं?”
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील प्रदीप संचेती ने दलील दी कि दो तरह के आरक्षण साथ नहीं चल सकते। उन्होंने कहा,“यह नहीं है कि सभी मराठों को कुणबी प्रमाणपत्र मिलेगा। केवल वही लोग पात्र होंगे जो अपनी वंशावली साबित कर सकें। बड़ी संख्या में कुर्मी पहले से ही ओबीसी लिस्ट में हैं। इस नए जीआर से कुछ और मराठा उसमें जुड़ेंगे। लेकिन दोनों तरह के आरक्षण साथ-साथ नहीं चल सकते।”
एडवोकेट जनरल बीरेन्द्र सराफ ने अदालत को बताया कि 2 सितंबर के जीआर का दायरा केवल मराठवाड़ा के वे मराठा हैं, जो खुद को कुणबी वंशज साबित कर पाएंगे। उन्होंने कहा,“यह जीआर सिर्फ उन लोगों के लिए है जो कुणबी वंशज हैं और दस्तावेज़ों से यह साबित करेंगे। उन्हें ओबीसी श्रेणी में लाभ मिलेगा। इसका SEBC के 10% आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”
राज्य सरकार ने फरवरी 2024 में महायुति सरकार के दौरान SEBC एक्ट लाकर मराठों को नौकरियों और शिक्षा में 10% आरक्षण दिया था। यह कानून जस्टिस (रिटा.) सुनील शु्क्रे आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसने असाधारण परिस्थितियों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण सीमा से अधिक जाने की सिफारिश की थी।
हाईकोर्ट ने साफ किया कि उसकी अप्रैल 2024 की अंतरिम व्यवस्था में कहा गया था कि SEBC एक्ट के तहत भर्ती और एडमिशन अंतिम फैसले के अधीन होंगे वह फिलहाल जारी रहेगी। अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को होगी।
2 सितंबर वाले जीआर को भी अलग-अलग याचिकाओं में चुनौती दी गई है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह जीआर मनमाना, असंवैधानिक और राजनीतिक रूप से प्रेरित है। एक याचिका में यह भी आरोप है कि सरकार ने मराठा आरक्षण पर अपने रुख को बार-बार बदला है, जो विरोधाभासी और अवैध है। इन याचिकाओं की सुनवाई अगले हफ्ते चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर की पीठ के सामने हो सकती है। मराठा आरक्षण मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक और कानूनी जंग का केंद्र बन चुका है, जिसमें अदालत ने अब सरकार से स्पष्टता की मांग की है कि आखिर क्या दोनों कोटे एक साथ चल सकते हैं या नहीं।
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