कौन हैं ओमप्रकाश वाल्मीकि जिनकी कविता “ठाकुर का कुआं” ने बिहार को गरमाया  

राज्यसभा में आरजेडी के सांसद मनोज झा ने ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता पढ़ी।     

कौन हैं ओमप्रकाश वाल्मीकि जिनकी कविता “ठाकुर का कुआं” ने बिहार को गरमाया  

पांच दिनों से बिहार की राजनीति में “ठाकुर का कुआं” कविता हलचल मचाई हुई है। जो कविता दलितों और जाति प्रथा की जाल में फंसे लगे लोगों के दर्द को बयां करती है। राज्यसभा में आरजेडी के सांसद मनोज झा ने ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता पढ़ी। उस समय महिलाओं को राजनीति में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल पास हुआ। इस दौरान मनोज झा और अन्य राजनीति दल इस आरक्षण में पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी की महिलाओं को भी आरक्षण देने की मांग कर रहे थे। जो संविधान में कहीं नहीं है। जानते है कि कविता में क्या लिखा है।

चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।

भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।

बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी

फसल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का
पानी ठाकुर का

खेल खलियान ठाकुर के
गली मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गांव?
शहर?
देश ?

भीम राव आंबेडकर के लेखन कार्य से प्रभावित: इस कविता को दलित चिंतक ओम प्रकाश वाल्मीकि ने लिखा है। उनका जन्म 3 जून 1950 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के बरला गांव में एक दलित परिवार में हुआ था। उनका शुरूआती जीवन अभावों में गुजरा। ओम प्रकाश वाल्मीकि ने अपनी आत्मकथा जूठन में जाति भेदभाव  का जिक्र किया है। बताया जाता है कि उन्होंने भीम राव आंबेडकर से प्रभावित होकर लेखन कार्य शुरू किया। बाद में उन्होंने नौकरी भी की। ओम प्रकाश वाल्मीकि ने अपनी रचनाओं में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को बहुत महत्व दिए हैं। ओमप्रकाश वाल्मीकि का 17 नवंबर 2013  में उनका देहरादून में निधन हो गया।

प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचंद का भी असर: वैसे ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन पर प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचंद का भी असर देखा जाता है। प्रेमचंद ने भी अपनी कहानियों में जाति प्रथा, महिलाओं से भेदभाव और सामाजिक ताने बाने को बड़े मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया है। प्रेमचंद ने भी “ठाकुर का कुआं” नामक कहानी लिखी है। जिसमें जाति प्रथा और भेदभाव का मुद्दा उठाया गया है।

 

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