26.7 C
Mumbai
Tuesday, June 24, 2025
होमधर्म संस्कृतिइलाहबाद उच्च न्यायालय: सामूहिक धर्मांतरण से सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा,

इलाहबाद उच्च न्यायालय: सामूहिक धर्मांतरण से सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा,

पुलिस कर सकती है आपराधिक कार्रवाई

Google News Follow

Related

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में कथित सामूहिक धर्मांतरण के एक मामले में FIR रद्द करने से इनकार करते हुए कहा है कि जब कमजोर वर्गों को धार्मिक लालच देकर धर्मांतरण के लिए उकसाया जाता है, तो राज्य मूकदर्शक नहीं बना रह सकता। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की गतिविधियां सामाजिक ताने-बाने और सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने जौनपुर जिले के केराकत थाना क्षेत्र में दर्ज FIR को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया। यह FIR वर्ष 2023 में चार आरोपियों के खिलाफ दर्ज की गई थी, जिन पर आरोप था कि वे पैसे और मुफ्त चिकित्सा सेवा का लालच देकर लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे थे।

पुलिस के अनुसार, आरोपी जौनपुर के विक्रमपुर गांव स्थित एक चर्च में ग्रामीणों को संबोधित कर रहे थे। जैसे ही पुलिस चर्च में पहुंची, आयोजक और मौजूद लोग मौके से भागने लगे। पुलिस ने चर्च से बाइबल की कई प्रतियां, सैकड़ों पैम्पलेट, लिफाफे और कुछ वाद्य यंत्र जब्त किए।

हाईकोर्ट ने 7 मई 2025 को दिए अपने आदेश में स्पष्ट किया कि किसी धर्म को अन्य धर्मों की तुलना में नैतिक या आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ मानना भारत की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण प्रतिषेध अधिनियम, 2021 का उद्देश्य धोखे, दबाव, प्रलोभन या जबरदस्ती के जरिए कराए जाने वाले धर्मांतरण को रोकना है।

मामले में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि एफआईआर केवल “पीड़ित व्यक्ति” ही दर्ज करा सकता है, जबकि इस केस में थानेदार (SHO) ने FIR दर्ज की थी। कोर्ट ने इस पर कहा कि “पीड़ित व्यक्ति” शब्द की व्याख्या व्यापक तरीके से की जानी चाहिए और इसमें SHO भी शामिल हो सकता है, क्योंकि वह सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने का जिम्मेदार अधिकारी है।

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि धर्म को मानना, उसका अभ्यास करना और प्रचार करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है, लेकिन यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि “स्वतंत्र रूप से” शब्द धर्म की स्वैच्छिक स्वीकृति को दर्शाता है, न कि लालच या दबाव का परिणाम।

कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस जांच जरूरी है और यदि अभियुक्त न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग नहीं करते हैं, तो निचली अदालत कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है। यह फैसला न केवल धार्मिक स्वतंत्रता की सीमा रेखा तय करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि जब सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों को लक्षित कर धर्मांतरण की कोशिश की जाए, तो राज्य के लिए हस्तक्षेप करना आवश्यक हो जाता है।

यह भी पढ़ें:

सामूहिक बलात्कार के आरोपी ज़मानत पाते ही करने लगे जश्न, निकाला जुलूस!

“यमुना केवल नदी नहीं, आस्था का प्रतीक है”: अमित शाह ने यमुना सफाई की समीक्षा की

पूर्वोत्तर राज्य बन रहे भारत का डिजिटल द्वार: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नक्सली हमले में शहीद कोबरा कमांडो को सीएम साय और डिप्टी सीएम शर्मा ने दी श्रद्धांजलि

मध्य प्रदेश में स्कूली पाठ्यक्रम में ऑपरेशन सिंदूर को शामिल करने की उठी मांग

National Stock Exchange

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

Star Housing Finance Limited

हमें फॉलो करें

98,429फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
253,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें