33 C
Mumbai
Friday, December 5, 2025
होमधर्म संस्कृतिदेवशयनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु के विश्राम पर जाते ही महादेव लेंगे सृष्टि...

देवशयनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु के विश्राम पर जाते ही महादेव लेंगे सृष्टि का भार!

शुरू होगा चातुर्मास का पुण्यकाल

Google News Follow

Related

संपूर्ण भारत में शनिवार  (6 जुलाई) को देवशयनी एकादशी का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और अगले चार महीनों तक ब्रह्मांड की जिम्मेदारी भगवान शिव संभालते हैं। इसी के साथ चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो व्रत, तप, योग और जप का विशेष काल माना जाता है।

मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए विश्राम करते हैं। इस दौरान संसार की समस्त गतिविधियों का संचालन भगवान शिव करते हैं। इसीलिए चातुर्मास के दौरान शिव पूजा का विशेष महत्व होता है। भक्तजन इस समय ध्यान, मंत्र जप, धार्मिक ग्रंथों का पाठ और सेवा-पुण्य करके दोगुना फल प्राप्त करते हैं।

दृक पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी की तिथि 5 जुलाई 2025 को शाम 6 बजकर 58 मिनट से प्रारंभ होगी और 6 जुलाई 2025 को शाम 9 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। व्रत मुख्य रूप से 6 जुलाई, शनिवार को रखा जाएगा, जबकि पारण 7 जुलाई, रविवार को किया जाएगा। इस दिन पूजा और व्रत के लिए अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 58 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। वहीं, राहुकाल का समय सुबह 8 बजकर 57 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक माना गया है, जिसमें शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है।

जो श्रद्धालु देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए। भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले फूल, अक्षत, धूप-दीप अर्पित करें। कथा वाचन और आरती के बाद दिनभर निराहार रहकर भगवान का ध्यान करें।

विशेष रूप से:

  •  “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र जाप करें
  • दान-पुण्य करें, विशेषकर गायों की सेवा और गौशाला में दान करें
  • धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें जैसे विष्णु सहस्रनाम या श्रीमद्भागवत

व्रत रखने में असमर्थ बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, बच्चे और रोगग्रस्त लोग केवल पूजा-पाठ और दान करके भी एकादशी व्रत के बराबर पुण्य कमा सकते हैं। इस पर्व का भाव ही श्रद्धा, भक्ति और सेवा है, न कि केवल उपवास।

6 जुलाई से प्रारंभ होकर देवउठनी एकादशी (नवंबर) तक चलने वाला चातुर्मास विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लगा देता है। यह काल आत्मचिंतन और साधना का माना जाता है।

देवशयनी एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है। जब सृष्टि के पालक भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और संसार की जिम्मेदारी शिव संभालते हैं, तब संपूर्ण सृष्टि धर्म, ध्यान और सेवा के मार्ग पर चलने को प्रेरित होती है।

हरि विष्णु… हर हर महादेव!

National Stock Exchange

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Star Housing Finance Limited

हमें फॉलो करें

151,714फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
284,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें