राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण का खुलासा हुआ है। एक संयुक्त सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया कि करीब 45,000 वर्ग फुट सार्वजनिक भूमि पर मस्जिद, कब्रिस्तान, बैंक्वेट हॉल, निजी डायग्नोस्टिक सेंटर और पार्किंग जैसे निर्माण खड़े कर दिए गए हैं। यह खुलासा सबसे पहले पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा ने राष्ट्र ज्योति के लिए अपनी रिपोर्ट में किया।
यह अतिक्रमण तुर्कमान गेट के पास उस ऐतिहासिक स्थल पर हुआ है, जो आज़ादी के बाद से लोकसभा रैलियों और जन आंदोलनों का प्रतीक रहा है। सर्वेक्षण में पाया गया की इस अतिक्रमित क्षेत्र का आकार कनॉट प्लेस के एक ब्लॉक से भी बड़ा है, जिससे दिल्ली के नागरिक और प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया है।
अक्टूबर 2025 के दूसरे सप्ताह में एमसीडी, लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस (L&DO) और डीडीए के अधिकारियों ने मिलकर इस स्थल का निरीक्षण किया। 16 अक्टूबर को हस्ताक्षरित रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 37,000 वर्ग फुट एमसीडी की भूमि पर बैंक्वेट हॉल, डायग्नोस्टिक सेंटर और वाहन पार्किंग का अवैध निर्माण पाया गया।
इसके अलावा करीब 7,400 वर्ग फुट क्षेत्र में एक बड़ी मस्जिद और कब्रिस्तान (फैज़ल शाह क़ब्रिस्तान) स्थित है। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि पीडब्ल्यूडी की ज़मीन और सार्वजनिक फुटपाथ तक को कब्ज़ा कर दीवार खड़ी कर दी गई है, जिससे आम जनता की पहुंच पूरी तरह बाधित हो गई है।
यह जांच सेव इंडिया फाउंडेशन के प्रमुख प्रीत सिरोही की शिकायत के बाद शुरू हुई। सिरोही ने मई 2025 में शिकायत दर्ज कराते हुए 1958 के सरकारी दस्तावेज़ प्रस्तुत किए, जिनसे साबित हुआ कि यह भूमि एलएंडडीओ द्वारा एमसीडी को सार्वजनिक उपयोग के लिए मात्र ₹1 वार्षिक किराये पर दी गई थी। सिरोही ने कहा, “केवल एक छोटा हिस्सा कब्रिस्तान के रूप में चिन्हित था। बाकी पूरा क्षेत्र जनता के उपयोग के लिए था, जिसे अब धार्मिक और व्यावसायिक कब्ज़े में बदल दिया गया है। यह जनता की संपत्ति की खुली लूट है।”
सिरोही ने राष्ट्र ज्योति को बताया कि यह मामला इस बात का प्रमाण है कि ‘लैंड माफिया’ नेटवर्क धर्म को सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि अधिकारी कार्रवाई से डरें। उन्होंने कहा,“जब भी कोई अधिकारी कानून लागू करने की कोशिश करता है, उस पर भावनाएं आहत करने का आरोप लगाया जाता है। यही डर प्रशासन को पंगु बना देता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह पैटर्न सिर्फ रामलीला मैदान तक सीमित नहीं है, बल्कि “पूरे दिल्ली में सार्वजनिक पार्क, सामुदायिक स्थल और सरकारी प्लॉट इसी तरह धार्मिक या व्यावसायिक अतिक्रमण की भेंट चढ़ रहे हैं।”
सेव इंडिया फाउंडेशन ने दिल्ली सरकार से मांग की है कि पूरा सर्वेक्षण रिपोर्ट और साइट मैप सार्वजनिक किया जाए, यह स्पष्ट किया जाए कि कौन सा हिस्सा वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है, और अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की जाए।
संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि धर्म के नाम पर अतिक्रमण को वैधता दी गई तो यह राजधानी के हृदय में साम्प्रदायिक भूमि कब्ज़े का खतरनाक उदाहरण बन जाएगा, जिससे नागरिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को दीर्घकालिक खतरा पैदा होगा। यह पहली बार नहीं है जब सिरोही के संगठन ने ऐसा मामला उठाया हो। वर्ष 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगोलपुरी Y ब्लॉक की मोहम्मदी जामा मस्जिद और मदरसा परिसर के अतिक्रमण वाले हिस्से को गिराने का आदेश दिया था। उस समय पत्थरबाज़ी और विरोध के बीच एमसीडी ने कार्रवाई पूरी की थी।
रामलीला मैदान अतिक्रमण का यह मामला अब दिल्ली सरकार और एमसीडी की जवाबदेही की परीक्षा बन गया है। यह देखा जाएगा कि प्रशासन धार्मिक संवेदनशीलता के दबाव में झुकता है या कानून के राज को लागू करता है। इस खुलासे ने फिर से यह बहस छेड़ दी है कि कैसे राजनीतिक तुष्टीकरण और प्रशासनिक निष्क्रियता ने दिल्ली के बीचोंबीच अवैध कब्ज़ों को फलने-फूलने दिया है।
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