उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में मक्के की खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़ा लक्ष्य तय किया है। उन्होंने 2027 तक मक्के का उत्पादन 14.67 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 27.30 लाख मीट्रिक टन करने का संकल्प लिया है। यह पहल न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में अहम है, बल्कि इससे इथेनॉल, पोल्ट्री फीड, दवा, एल्कोहल और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योगों को भी मजबूती मिलेगी।
हाल ही में लखनऊ में आयोजित राज्य स्तरीय खरीफ गोष्ठी में कृषि मंत्री ने मक्का, अरहर और सरसों की खेती बढ़ाने की अपील की। सरकार पहले ही दलहन और तिलहन के मामले में उत्पादन दोगुना कर चुकी है और अब मक्का पर फोकस कर रही है।
मक्का एक बहुपयोगी फसल है जो भुट्टा, आटा, पॉपकॉर्न, बेबीकॉर्न से लेकर पशु चारा, इथेनॉल और पेपर निर्माण तक में उपयोगी है। इसके अलावा इसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल पाए जाते हैं, जिस कारण इसे “अनाजों की रानी” कहा जाता है।
उत्तर प्रदेश की औसत उपज जहां 2021-22 में 21.63 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, वहीं देश का औसत 26 क्विंटल है और तमिलनाडु जैसे राज्य 59.39 क्विंटल तक पहुंच चुके हैं। विशेषज्ञों के अनुसार उत्तर प्रदेश में भी उन्नत तकनीकों से यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार, खरीफ मक्का की बुवाई 15 जून से 15 जुलाई के बीच करना आदर्श रहेगा। यदि सिंचाई की सुविधा हो तो मई के मध्य में भी बुवाई संभव है जिससे मानसून की अधिक बारिश से फसल सुरक्षित रह सके।
सरकार न केवल जागरूकता अभियान चला रही है, बल्कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के तहत मक्का की खरीद सुनिश्चित करके किसानों को उचित मूल्य दिलाने का भी प्रयास कर रही है। यह पहल ‘डबल इंजन सरकार’ के विजन को भी दर्शाती है—एक ओर औद्योगिक उपयोग की आपूर्ति सुनिश्चित करना और दूसरी ओर किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में बढ़ना।
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