मोदी सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने पर घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी एक दिन पहले ही इस पर एक लंबा चौड़ा पीएम मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने सवाल उठाया है कि विपक्ष से बिना चर्चा किये ही विशेष सत्र कैसे बुलाया गया। उन्होंने कई मुद्दों को भी उठाया है। इतना ही नहीं उन्होंने एजेंडा साफ़ नहीं करने का भी आरोप लगाया है। जबकि संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने पत्र का जवाब देते हुए कहा है कि विशेष सत्र परम्परा के अनुसार ही बुलाया गया है। इस पर विपक्ष ओछी राजनीति न करे।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इस ऐलान के बाद से विपक्ष हैरान परेशान है। वहीं,सरकार ने विशेष सत्र का कोई एजेंडा साफ़ नहीं किया है। सरकार विशेष सत्र का ऐलान 31 अगस्त को किया था, विपक्ष के “इंडिया” गठबंधन की 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में तीसरी बैठक थी। इसकी वजह से विपक्ष और परेशान और हड़बड़ाहट में था। इसके एक दिन बाद ही सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में “वन नेशन, वन इलेक्शन” समिति गठित कर दी। इसके बाद से यह चर्चा तेज हो गई की विशेष सत्र में इस पर बिल ला सकती है। हालांकि, इसके अलावा भी ऐसे में कई मुद्दे हैं जो चर्चा है। जिसमें, भारत बनाम इंडिया, महिला आरक्षण भी चर्चा में है।
जबकि सरकार के हवाले से कहा गया है कि जी 20 के बाद विशेष सत्र का एजेंडा तय किया जाएगा। अब कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है और कहा है कि आम तौर पर विशेष सत्र के लिए चर्चा होती है और आम सहमति बनाई जाती है। इसका एजेंडा भी तय होता है। यह पहली बार है कि बैठक बुलाई जा रही है और एजेंडा तय नहीं है। उन्होंने अपनी चिट्ठी में नौ मुद्दे पर चर्चा कराने की बात की है जिसमें महंगाई, एमएसएमई, बेरोजगारी किसानों की मांग, अडानी का मुद्दा, केंद्र राज्य संबंध, चीन सीमा का मुद्दा और मणिपुर के साथ हरियाणा हिंसा मुद्दा शामिल है। सोनिया गांधी के पत्र का जवाब संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने दिया है। उन्होंने अपने जवाब में कहा है कि विशेष सत्र संसदीय परम्पराओं के अनुरूप ही बुलाया गया है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि शायद आपका परम्पराओं की ओर ध्यान नहीं है।
विशेष सत्र बुलाने से पहले न कभी राजनीति दलों से चर्चा की जाती है और न ही मुद्दों पर बात किया जाता है। उन्होंने आगे लिखा है कि अपने जो मुद्दे उठाये हैं उस पर मानसून सत्र के दौरान चर्चा हो चुकी है। ऐसे में यह जाना जरुरी है कि क्या मोदी सरकार ने नियमानुसार सबकुछ किया है। गौरतलब है कि एक साल में संसद की बैठक तीन सत्रों में बुलाई जाती है। पहला बजट सत्र , मानसून सत्र और तीसरा सत्र शीतकालीन होता है। इसमें सबसे लम्बा बजट सत्र होता है जो जनवरी के अंत से शुरू होता है ,जो अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह तक चलता है। इसी तरह से दूसरा, सत्र मानसून सत्र होता है। जो जुलाई में शुरू होता है,अगस्त में खत्म होता है। अगर तीसरे सत्र की बात की जाए तो यह सत्र नवंबर से लेकर दिसंबर तक चलता है। इसके अलावा जो सत्र बुलाया जाता है उसे विशेष सत्र कहा जाता है। जिसकी तारीख और जगह सदस्यों को बताना अनिवार्य है। लेकिन, कोई आपात स्थिति में बुलाये गए सत्र की हर सदस्य को जानकारी देना जरुरी नहीं है। नियम के अनुसार राजपत्र और प्रेस के माध्यम से यह जानकारी दी जाती है।
वहीं नियमानुसार, सत्र बुलाने की जानकारी सरकार 15 दिन पहले देती है। लेकिन, इसमें एजेंडा बताना अनिवार्य नहीं है। सरकार संसद सत्र के एक दिन पहले बुलेटिन जारी कर तय एजेंडे के बारे में जानकारी देती है। साथ ही सरकार के पास यह शक्ति है कि वह तय एजेंडा को भी बदल सकती है। वैसे मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्यों के पुनर्गठन से जुड़े बिल को पेश करने के दौरान बदल दिया था। इन बिलों की जानकारी उसी दौरान दी गई थी। बहरहाल यह पहला मौक़ा नहीं है जब मोदी सरकार ने विशेष सत्र बुलाया है। इससे पहले भी मोदी सरकार ने 2017 में जीएसटी लागू करने के लिए लोकसभा और राज्य सभा का संयुक्त सत्र आधी रात को बुलाया था।
वहीं, कांग्रेस समर्थित यूपीए की बात करें तो 2008 में मनमोहन की सरकार ने विशेष सत्र बुलाया था। उस समय वाम दलों ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। तब यूपीए सरकार ने विश्वास मत के लिए लोकसभा का विशेष सत्र बुलाया था। इसके अलावा ,2015, 2002 और 1992 में भी विशेष सत्र बुलाया गया था। बहरहाल , विशेष सत्र पर सभी की निगाहें लगी हुई है कि मोदी सरकार क्या करने वाली है। तो देखते कि विपक्ष का डर कितना जायज और सरकार क्या छुपा रही है।
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