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दक्षिण एशिया: 2024 बदलेगा क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों में मतपेटिकाएं ही भविष्य की दिशा तय करेंगी।

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प्रशांत कारुलकर

हिमालय की ऊंचाइयों से लहरारूपी बंगाल की खाड़ी तक, 2024 दक्षिण एशिया में चुनावों की तूफानी हवा चलने का साल होगा। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों में मतपेटिकाएं ही भविष्य की दिशा तय करेंगी। आइए देखें कि कैसे इन देशों के चुनाव पूरे क्षेत्र की राजनीति को हिला सकते हैं:

भारत: अप्रैल-मई में होने वाले भारतीय आम चुनावों पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता पाने की कोशिश करेंगे, जबकि विपक्षी दल एकजुट मोर्चा बनाकर उन्हें हराने के लिए जुटे हैं। आर्थिक प्रदर्शन, सामाजिक मुद्दे और राष्ट्रीय सुरक्षा चुनावी रणनीति का केंद्र होंगे। भारत की जीत या हार दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य पर दूरगामी प्रभाव डाल सकती है।

पाकिस्तान: 29 अप्रैल को पाकिस्तान में जंग छिड़ेगी। इमरान खान की पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ, सत्ता वापसी पर आमादा है, जबकि मौजूदा सरकार आर्थिक सुधारों और सुरक्षा का वादा कर रही है। आतंकवाद, क्षेत्रीय तनाव और आर्थिक अस्थिरता चुनाव में हावी रहेंगे। पाकिस्तान की नई सरकार भारत और अन्य पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को कैसे संभालेगी, यह देखना होगा।

बांग्लादेश: जनवरी को बांग्लादेश में होनेवाले चुनावों में सत्तारूढ़ अवामी लीग की फिर से जीत लगभग तय मानी जा रही है, लेकिन किसान असंतोष और विपक्ष की रणनीति कुछ खलबली मचा सकती है। शेख हसीना वाजेद का चौथा कार्यकाल बांग्लादेश के आर्थिक विकास और भारत के साथ रिश्तों को किस दिशा में ले जाएगा, यह चुनाव के बाद की तस्वीर साफ करेगा।

भूटान: 9 जनवरी को भूटान के दूसरे चरण के चुनाव भी होने हैं। नई नेशनल असेंबली का गठन क्षेत्रीय सहयोग और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर भूटान की भूमिका को प्रभावित करेगा। वोट किस पार्टी को साथ देगा, ये जानने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना होगा।

इन चुनावों के नतीजे सिर्फ संबंधित देशों को ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति को नया मोड़ दे सकते हैं। आर्थिक सहयोग, जल संसाधन प्रबंधन और आतंकवाद विरोधी सहयोग पर इन चुनावों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कोई बदलाव, पूरे क्षेत्र की शांति और सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है। कुल मिलाकर, २०२४ दक्षिण एशिया में चुनावी वर्ष ही नहीं, राजनीतिक बदलाव का साल भी साबित होगा। यह देखना होगा कि मतपेटियों से कौन उभरता है और दक्षिण एशिया का भविष्य कैसा लिखता है।

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