सही मायने में देश के विकास में करप्शन एक बहुत रोड़ा है। भारत इस वस्तुस्थिति से अच्छी तरह वाकिफ है.इसलिए वह करप्शन को कम करने के लिए लगातार मुहिम चला रहा है. इस प्रयास के सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर भी होने लगे हैं. इसकी पुष्टि टीआरएसीई (ट्रेस) द्वारा नवंबर, 2020 में जारी एक रिपोर्ट से भी होती है. ट्रेस किसी भी देश में रिश्वतखोरी के कम या ज्यादा होने के आधार पर वैश्विक स्तर पर देशों की श्रेणी जारी करता है.यह चार अलग-अलग मापदंडों- पारदर्शिता, व्यापार, नागरिकों की प्रतिक्रिया और समाज में रिश्वतखोरी का विरोध- के आधार पर विविध देशों द्वारा भ्रष्टाचार को कम करने के लिए अपनाये गये उपायों को दृष्टिगत रखते हुए अपनी रिपोर्ट जारी करता है. ट्रेस 2020 की रिपोर्ट के अुनसार, 194 देशों की सूची में भारत ने 77वां स्थान हासिल किया है. रिश्वतखोरी को कम करने के लिए किये जा रहे सुधारों के संदर्भ में भारत ने कुल 45 अंक हासिल किये हैं.रिश्वत से जुड़े जोखिमों को कम करने में 2014 के बाद से भारत अपनी स्थिति को लगातार बेहतर करने में सफल रहा है. वर्ष 2014 में ट्रेस की रैंकिंग में भारत ने 197 देशों की सूची में कुल 80 अंक प्राप्त कर 185वां स्थान हासिल किया था,
जबकि 2017 में यह 88वें पायदान पर पहुंच गया. भारत को यह उपलब्धि सरकार द्वारा करप्शन और रिश्वतखोरी के विरुद्ध चलाये जा रहे मुहिम की वजह से हासिल हुई है.इस मुहिम के तहत 2018 में ‘प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988’ में संशोधन किया गया, जिसमें रिश्वत देने को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया. इस पहल से व्यक्तिगत एवं कॉरपोरेट इकाइयों के स्तर पर करप्शन और रिश्वतखोरी को कम करने में सफलता मिली. इसके पहले तक सिर्फ रिश्वत लेनेवाले को ही अपराधी माना जाता था. आंकड़ों के अनुसार, 2008 से 2019 के बीच केंद्रीय सतर्कता आयोग को मिली शिकायतों में 32,579 की कमी आयी.2016 और 2018 में प्राप्त शिकायतों में मामूली वृद्धि हुई. साथ ही केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा दी जाने वाली सजा में भी कमी आयी. प्रशासन के हर स्तर पर कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आयी है, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आ रही है.
केंद्रीय सतर्कता आयोग को मिलने वाली शिकायतों की संख्या में कमी का एक बड़ा कारण सूचना एवं प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर नवाचार को बढ़ावा दिया जाना है. खरीद एवं बिक्री अब ऑनलाइन हो रही है. इसके लिए ई-निविदा, ई-प्रोक्योरमेंट, रिवर्स नीलामी आदि का सहारा लिया जा रहा है, सो भारत में भ्रष्टाचार में उल्लेखनीय कमी आयी है. भ्रष्टाचार कम होने से आर्थिक विकास में तेजी आती है या नहीं, इसे लेकर देश-विदेश में अलग-अलग विचार हैं.
ओईसीडी (ओकेड) के एक अध्ययन के मुताबिक, भ्रष्टाचार की वजह से विदेशी निवेश, प्रतिस्पर्धा, सरकारी कुशलता, सरकारी खर्च, राजस्व संग्रह, मानव पूंजी निर्माण आदि में कोई कमी नहीं आती है. लेकिन यह संकल्पना सभी देशों में एक समान नहीं है. वर्ष 2012 से 2018 के बीच भारत, इंग्लैंड, मिस्र, ग्रीस, इटली आदि देश भ्रष्टाचार सूचकांक में अपनी श्रेणी बेहतर करने में सफल रहे. इसी कारण इस अवधि में इन देशों के जीडीपी में सकारात्मक वृद्धि दर्ज हुई.
भारत में भ्रष्टाचार के कम होने से आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर हो रहे लाभ को स्पष्ट देखा जा सकता है. भ्रष्टाचार सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन करने से विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति भरोसा बढ़ा और देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में इजाफा हुआ.वित्त वर्ष 2011 के 11.8 बिलियन यूएस डॉलर की तुलना में 2020 में भारत में एफडीआइ बढ़कर 43.0 बिलियन यूएस डॉलर हो गयी. इस तरह इस अवधि में एफडीआइ में 263 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वहीं, वित्त वर्ष 2012 से 2018 के बीच एफडीआइ में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई. अप्रैल 2020 से नवंबर 2020 तक एफडीआइ में 27.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
भ्रष्टाचार को कम करने के उपायों के बारे में वैश्विक स्तर पर लोगों की अलग-अलग राय है, पर भारत के संदर्भ में रिश्वत लेने एवं देनेवाले दोनों को सजा देने से भ्रष्टाचार को कम करने में सफलता मिल सकती है रिश्वत देनेवाले को भी अपराधी की श्रेणी में डालने से भ्रष्टाचार के कम होने की संभावना बढ़ी है. सूचना एवं प्रौद्योगिकी, डिजिटल लेनदेन के बढ़ते चलन से भी सरकारी एवं निजी कार्यों में पारदर्शिता आ रही है.भारत में भ्रष्टाचार में कमी आती है, तो विकास को भी बल मिलेगा।