प्रशांत कारुलकर
लाल सागर में हुथी विद्रोहियों और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के बीच बढ़ते तनाव की गूंज अब विश्वव्यापी ऊर्जा आयात तक पहुंच चुकी है। आशंका जताई जा रही है कि इस संघर्ष का परिणाम दुनियाभर के देशों के पेट्रो उत्पादों के आयात पर भारी पड़ सकता है।
कैसे प्रभावित होगा आयात?
जहाजों का रास्ता बदलाव: हुथी विद्रोहियों द्वारा जहाजों पर हमले का खतरा बढ़ने से कई कंपनियां अब लाल सागर के रास्ते का इस्तेमाल ना करते हुए लंबे और अधिक महंगे केप ऑफ गुड होप रूट का सहारा ले रही हैं। इस बदलाव के फलस्वरूप परिवहन लागत में बढ़ोतरी, देरी और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान की संभावना है।
तेल की कीमतों में उछाल: इन व्यवधानों का सीधा असर वैश्विक तेल बाजार पर पड़ेगा। आपूर्ति में कमी और मांग में स्थिरता के चलते तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका है। इससे एविएशन से लेकर बिजली उत्पादन तक विभिन्न क्षेत्रों पर महंगाई का बोझ बढ़ सकता है।
भू-राजनीतिक तनाव: लाल सागर में बढ़ते तनाव क्षेत्र में अन्य देशों को भी खींच सकते हैं। यह तनाव विश्व तेल निर्यातकों की ओर से उत्पादन या निर्यात में कटौती का कारण बन सकता है, जिससे वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा का संकट और गहरा सकता है।
भारत पर क्या होगा असर?
भारत के लिए यह संघर्ष खासतौर पर चिंता का विषय है, क्योंकि भारत 85% से अधिक कच्चे तेल का आयात करता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व देशों से रेड सी के रास्ते आता है। रास्ते बदलने, बढ़ते बीमा शुल्क और तेल की कीमतों में उछाल का भारत के आयात बिल पर सीधा असर पड़ेगा। इससे मुद्रास्फीति बढ़ने और भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ने की संभावना है।
क्या हो सकता है समाधान?
इस संकट के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर कदम उठाने की जरूरत है। लाल सागर में सुरक्षा सुनिश्चित करना, विद्रोहियों से शांतिपूर्ण वार्ता का प्रयास करना और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख करना ऐसे कुछ प्रबल उपाय हैं जो इस ऊर्जा ऊहापोह को कम करने में सहायक हो सकते हैं। लाल सागर का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। यह देखना बाकी है कि यह वैश्विक ऊर्जा आयात को कितना प्रभावित करता है और इससे उबरने के लिए क्या मुत्सदी कदम उठाए जाते हैं।
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