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इंडसइंड बैंक इनसाइडर ट्रेडिंग मामला: सेबी के 20 करोड़ रुपये वसूलने के आदेश

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भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने इंडसइंड बैंक के इनसाइडर ट्रेडिंग मामले में बड़ा कदम उठाते हुए बैंक के पांच वरिष्ठ अधिकारियों से लगभग 20 करोड़ रुपये वसूलने (disgorge) का आदेश दिया है। इनमें पूर्व डिप्टी सीईओ अरुण खुराना और पूर्व सीईओ सुमंत कठपालिया शामिल हैं।

SEBI की जांच के अनुसार, इन अधिकारियों ने बैंक की ऐसी अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील जानकारी (UPSI) के आधार पर शेयरों की बिक्री की, जो आम जनता के लिए उपलब्ध नहीं थी। यह UPSI इंडसइंड बैंक के डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में नुकसान से संबंधित थी, जिसकी जानकारी बैंक ने 10 मार्च 2025 को सार्वजनिक की थी। इस दिन बैंक ने बताया था कि उसे डेरिवेटिव में 1,530 करोड़ रुपये के नेटवर्थ पर 2.35% का नुकसान हुआ है। इस खुलासे के बाद 11 मार्च को बैंक के शेयरों में 27.2% की गिरावट आई – 901 रुपये से गिरकर 656 रुपये तक।

बैंक की इस घोषणा और स्टॉक गिरने के बाद, सेबी ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच शुरू की। जांच की अवधि 12 सितंबर 2023 से 10 मार्च 2025 तक रखी गई, क्योंकि उसी दिन आरबीआई ने एक निर्देश (Master Direction) जारी किया था, जिसके बाद इंडसइंड बैंक ने डेरिवेटिव लेखा मुद्दों की समीक्षा के लिए एक आंतरिक समिति बनाई। सेबी को पता चला कि 26 सितंबर 2023 को हुई पहली बैठक में ही लेखांकन विसंगतियों का पता चल गया था। इसके बाद से ही UPSI की उत्पत्ति मानी गई।

सेबी की जांच में सामने आया कि जिन अधिकारियों को इंडसइंड बैंक के डेरिवेटिव घाटे की गोपनीय जानकारी (UPSI) पहले से प्राप्त थी, उन्होंने सार्वजनिक खुलासे से पहले ही अपने शेयर बेचकर भारी नुकसान से बचाव किया। पूर्व डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने 4 दिसंबर 2023 को 3,48,500 शेयर बेचकर लगभग 53 करोड़ रुपये की कमाई की, जिससे उन्हें अनुमानित 14.4 करोड़ रुपये के संभावित नुकसान से बचने का लाभ मिला। इसी तरह, पूर्व सीईओ सुमंत कठपालिया ने 1,25,000 शेयर बेचकर करीब 19.2 करोड़ रुपये अर्जित किए और उन्हें लगभग 5.21 करोड़ रुपये का फायदा हुआ। इनके अलावा तीन अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कम मात्रा में शेयर बेचे और उन्हें लगभग 4 लाख से 7 लाख रुपये के बीच का लाभ प्राप्त हुआ। सेबी ने इन सभी सौदों को UPSI पर आधारित मानते हुए इसे इनसाइडर ट्रेडिंग का मामला करार दिया है।

सेबी के अनुसार, इन अधिकारियों ने वित्तीय वर्ष 2024 और 2025 के लिए कोई पूर्व नियोजित ट्रेडिंग योजना दाखिल नहीं की थी। इससे साबित होता है कि उनके सौदे UPSI पर आधारित थे।

सेबी ने शेयर बिक्री की तारीख और खुलासे के बाद कीमत में आई गिरावट (27.165%) के आधार पर यह गणना की कि अगर ये अधिकारी UPSI सार्वजनिक होने के बाद शेयर बेचते तो उन्हें कितना नुकसान होता। यही नुकसान से बचाव (Avoided Loss) उनके लिए वसूली की राशि बनी।

सेबी की 32 पन्नों की अंतरिम आदेश में कहा गया, “यह मानना भोलेपन होगा कि इन लोगों ने सामान्य तौर पर ट्रेड किया जबकि डेरिवेटिव नुकसान पर गंभीर चर्चा चल रही थी।”यह मामला एक बार फिर दर्शाता है कि बाजार में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए सेबी कितनी सख्ती से काम कर रहा है और इनसाइडर ट्रेडिंग पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जा रही है।

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