मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने ₹65 करोड़ के मीठी नदी सिल्ट हटाने (Desilting) घोटाले की जांच को और तेज कर दिया है। इस घोटाले में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत का संदेह है, जिसके तहत चुनिंदा कंपनियों को ठेका देने के लिए अन्य बोलीदाताओं को जानबूझकर बाहर कर दिया गया।
EOW सूत्रों के अनुसार, अधिकारी जल्द ही 2020 से 2025 के बीच BMC की टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाली उन कंपनियों के प्रतिनिधियों के बयान दर्ज करना शुरू करेंगे, जिन्हें कथित रूप से तकनीकी कारणों का हवाला देकर अयोग्य घोषित किया गया था। ये सभी ठेके मुख्य आरोपी भूपेंद्र पुरोहित से जुड़ी कंपनियों को दिए गए।
जांच में सामने आया है कि हर साल मीठी नदी की सफाई के लिए 20–25 कंपनियों ने बोली लगाई, लेकिन BMC के अधिकारियों ने ठेके में ऐसे विशेष तकनीकी नियम डाले, जिनसे सिर्फ पुरोहित की कंपनियाँ ही योग्य ठहराई गईं, जबकि अन्य को अयोग्य करार दिया गया, जबकी उनके पास आवश्यक मशीनरी और अनुभव मौजूद था।
EOW के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि सरिका कामदार, जो मुख्य आरोपी इंजीनियर प्रशांत रामुगड़े की करीबी मानी जाती हैं, अब सरकारी गवाह बन चुकी हैं। कामदार को Grupo Solutions नामक कंपनी की निदेशक दिखाया गया था, लेकिन उन्होंने EOW को दिए गए बयान में स्वीकार किया कि उन्हें कंपनी की कोई जानकारी नहीं थी और वह केवल रामुगड़े के कहने पर कागज़ों में निदेशक बनी थीं। उनका यह बयान न्यायालय में धारा 164 CrPC के तहत दर्ज किया जाएगा, जिससे यह गवाही पुख्ता सबूत के रूप में स्वीकार की जा सकेगी।
गंभीर मोड़ तब आया जब प्रशांत रामुगड़े, जो मई 2025 में केस दर्ज होने के बाद EOW के सामने नियमित रूप से पेश हो रहा था, गिरफ्तारी के दिन अचानक गायब हो गया। जांचकर्ताओं को संदेह है कि उसे गिरफ्तारी की गोपनीय योजना की जानकारी किसी अंदरूनी व्यक्ति ने दी, जिससे वह भाग निकला और तुरंत अग्रिम जमानत की याचिका दाखिल की।इस लीक ने जांच एजेंसी के भीतर संभावित अंदरूनी सांठगांठ को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। फिलहाल, EOW रामुगड़े की तलाश में छापेमारी कर रही है और उसके खिलाफ साक्ष्य जुटाने में जुटी है।
जांच टीम अब उन कंपनियों के प्रतिनिधियों के बयान लेने जा रही है, जो टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने के बावजूद तकनीकी अयोग्यता के आधार पर बाहर कर दी गई थीं। कुछ को सरकारी गवाह के रूप में पेश किए जाने की योजना भी है, जिससे अदालत में भ्रष्टाचार के इस जाल को बेनकाब किया जा सके।
इस ₹65 करोड़ के घोटाले ने न सिर्फ मुंबई की नगर व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि BMC की टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर भी गंभीर चिंताएं पैदा की हैं। आने वाले दिनों में EOW की जांच और गवाही पर इस पूरे मामले की दिशा निर्भर करेगी।
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