तेलंगाना में माओवादी हिंसा के खिलाफ़ सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली है। गुरुवार (19 जून) को भद्राद्री-कोठागुडेम जिले में सीपीआई (माओवादी) से जुड़े 12 कैडरों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। आत्मसमर्पण करने वालों में 2 डिवीजनल कमिटी सदस्य (DVCM) और 4 एरिया कमिटी सदस्य (ACM) शामिल हैं, जो लंबे समय से उग्रवादी गतिविधियों में सक्रिय थे।
तेलंगाना पुलिस के अनुसार आत्मसमर्पण करने वाले कैडर छत्तीसगढ़ से ताल्लुक रखते हैं और कई वर्षों से माओवादी संगठनों के लिए काम कर रहे थे। उनके आत्मसमर्पण को राज्य सरकार ने माओवादी उन्मूलन के प्रयासों की दिशा में एक अहम उपलब्धि बताया है। साल 2025 में तेलंगाना में अब तक कुल 566 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जबकि देशभर में यह आंकड़ा 1260 तक पहुंच चुका है। इसकी तुलना में साल 2024 में पूरे वर्ष कुल 881 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था, जिससे साफ है कि 2025 में सरकार की रणनीति अधिक प्रभावी रही है।
इससे पहले, आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले में सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ में सीपीआई (माओवादी) के तीन बड़े नेता मारे गए। यह मुठभेड़ आंध्र-ओडिशा बॉर्डर पर चलाए जा रहे तलाशी अभियान के दौरान हुई, जिसे राज्य की विशिष्ट माओवादी विरोधी इकाई ग्रेहाउंड्स ने अंजाम दिया।
सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ स्थल से तीन एके-47 राइफलें बरामद कीं। मारे गए माओवादियों की पहचान इस प्रकार की गई है। गजरला रवि उर्फ उदय, AOB स्पेशल जोन कमेटी के सचिव और सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सदस्य। उस पर 25 लाख रुपये का इनाम था। अरुणा, स्पेशल जोन कमेटी की सदस्य, मूल निवासी विशाखापत्तनम जिले के करकावानीपालम गांव की। उस पर भी 25 लाख रुपये का इनाम था। अंजू, स्पेशल जोन कमेटी की एरिया कमेटी सदस्य।
माओवादी अरुणा का नाम 2018 के चर्चित अराकू हत्याकांड में सामने आया था, जिसमें टीडीपी के विधायक किदारी सर्वेश्वर राव और पूर्व विधायक सिवेरी सोमा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अरुणा, माओवादी केंद्रीय समिति के सदस्य रामचंद्र रेड्डी उर्फ चलापथी की पत्नी थी, जो इस साल जनवरी में छत्तीसगढ़ में मारे गए 14 माओवादियों में शामिल था।
विशेषज्ञों का मानना है कि आत्मसमर्पण और मुठभेड़ों की बढ़ती घटनाएं सरकार की कड़ी रणनीति और सुरक्षा बलों की सतर्कता का परिणाम हैं। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा माओवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए चलाई जा रही पुनर्वास योजनाओं, साथ ही सघन सैन्य अभियानों ने माओवादी नेटवर्क को कमजोर किया है।
अब यह साफ होता जा रहा है कि उग्रवाद की जड़ें धीरे-धीरे हिल रही हैं और पूर्ववर्ती माओवादी गढ़ों में सुरक्षा बलों का नियंत्रण लगातार मजबूत हो रहा है। आत्मसमर्पण की यह श्रृंखला इस ओर इशारा करती है कि बंदूक के रास्ते की जगह अब कई माओवादी जीवन की मुख्यधारा में लौटने को तैयार हैं।
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