22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए इस्लामी आतंकी हमले ने जहां पूरे भारत को दहला दिया, वहीं नेपाल में भी शोक की लहर दौड़ गई। इस भीषण हमले में मारे गए 27 वर्षीय नेपाली नागरिक सुदीप न्यौपाने को आतंकियों ने उस समय निशाना बनाया, जब वह अपनी असली पहचान बताने तक का मौका नहीं पा सके।
साक्षियों के अनुसार सुदीप एक प्रशिक्षित मेडिकल प्रोफेशनल थे और अपनी मां, बहन तथा जीजा के साथ कश्मीर की वादियों का आनंद लेने आए थे। जिस वक्त आतंकियों ने हमला किया, उस समय वे अन्य पर्यटकों के साथ थे। हमले के समय जब आतंकियों ने उसे धर्म पूछा, सुदीप ने खुद को हिंदू बताया था, लेकिन इससे पहले कि वह यह स्पष्ट कर पाते कि वे भारतीय नहीं बल्कि नेपाल के नागरिक हैं, आतंकियों ने उन पर गोलियां बरसा दीं।
सुदीप को बेहद नजदीक से गोली मारी गई थी, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। परिवार के अन्य सदस्य किसी तरह जान बचाकर भाग निकले, लेकिन इस त्रासदी ने उनकी कश्मीर यात्रा को हमेशा के लिए एक दर्दनाक स्मृति में बदल दिया।
सुदीप का पार्थिव शरीर पहले श्रीनगर लाया गया, फिर वहां से दिल्ली और गोरखपुर होते हुए नेपाल के बुटवल स्थित उनके पैतृक निवास पहुंचाया गया। तीन राज्यों और एक अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने के बाद जब उनका शव घर पहुंचा, तो पूरे इलाके में शोक का माहौल छा गया। सैकड़ों लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए और नेपाल सरकार ने भी इस हृदयविदारक घटना पर गहरी संवेदना व्यक्त की।
इस हमले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक कट्टरपंथी आतंकवाद का ज़हर मासूमों की जान लेता रहेगा? नेपाल जैसे मित्र राष्ट्र के नागरिकों की भी हत्या आतंकियों के अमानवीय चेहरे को उजागर करती है, जो केवल धर्म देखकर दहशतगर्दी फ़ैलाने में विश्वास रखते हैं। भारत में नेपाली दूतावास ने भी इस घटना पर दुख जताते हुए दोनों देशों के बीच समन्वय बढ़ाने की बात कही है ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को रोका जा सके।
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