ममता बनर्जी के नेतृत्व में शासित पश्चिम बंगाल एक बार फिर सुर्खियों में है—इस बार वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर। राज्य के मुर्शिदाबाद जिले में इस अधिनियम के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा ने अब न्यायपालिका का दरवाज़ा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर दाखिल की गई दो जनहित याचिकाओं पर 21 अप्रैल को सुनवाई निर्धारित की गई है।
वकील शशांक शेखर झा और विशाल तिवारी द्वारा दाखिल याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (SIT) के गठन की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि हिंसा सिर्फ कानून-व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि एक गहरी साजिश की ओर इशारा करती है जिसे सामान्य प्रशासनिक प्रतिक्रिया से नहीं निपटा जा सकता।
याचिका में पश्चिम बंगाल सरकार से जवाब मांगा गया है कि क्यों राज्य लगातार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल हो रहा है। मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ करेगी।
इधर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य की जनता को पत्र लिखकर शांति बनाए रखने की अपील की है। उन्होंने लिखा, “विरोधी कभी नहीं चाहते कि कुछ सकारात्मक और अच्छा काम किया जाए। किसी भी प्रलोभन या बहकावे में नहीं आएं। राज्य में शांति बहाल है।” लेकिन इस वक्तव्य के समानांतर राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस की प्रतिक्रिया कहीं ज़्यादा तीखी और ज़मीनी रही।
राज्यपाल बोस ने हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद जिले का दौरा कर हालात का जायज़ा लिया और मीडियाकर्मियों से कहा, “मैंने प्रभावित लोगों से जो जाना है, वह यह है कि उन पर बर्बर हमले किए गए हैं। सभ्य समाज में इस तरह के हमले स्वीकार्य नहीं हैं। यह भारतीय लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे और केंद्र सरकार को स्थिति की वास्तविकता से अवगत कराएंगे।
यह पूरी घटना पश्चिम बंगाल के असंस्कृत और असहिष्णु धार्मिक ताकतों की मनमानी दिखती है। साथ ही पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक संतुलन और प्रशासनिक तत्परता पर भी कठोर सवाल छोड़ जाती है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि न्याय की आंच दंगाइयों को तपाने की इच्छाशक्ति रखती है या नहीं।
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