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Saturday, July 27, 2024
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मुस्लिमों की छुटियां बढ़ाकर नीतीश कुमार काटेंगे वोट की फसल? 

बिहार सरकार ने 2024 का कैलेंडर जारी किया है,जिसमें हिन्दुओं की छुट्टी के दिनों में कटौती की गई है,जबकि मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाये जाने वाले ईद,बकरीद के लिए तीन तीन दिन की छुट्टी का प्रावधान रखा गया है।

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भारत में वोट की फसल जाति धर्म के आधार पर ही काटी जाती रही है। कांग्रेस पहले से ही मुस्लिम तुष्टिकरण करती रही है। अब नीतीश कुमार कांग्रेस से दो कदम आगे बढ़ गए है। जिस तरह से बिहार में हिन्दू त्योहारों की छुटियों पर कैंची चली है। जबकि मुस्लिम त्योहारों बकरीद, ईद पर छुट्टियों के दिनों में बढ़ोत्तरी की गई है, जिस पर बवाल मचा हुआ है।

दरअसल, बिहार सरकार ने 2024 का कैलेंडर जारी किया है,जिसमें हिन्दुओं की छुट्टी के दिनों में कटौती की गई है,जबकि मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाये जाने वाले ईद,बकरीद के लिए तीन तीन दिन की छुट्टी का प्रावधान रखा गया है। जबकि, मोहर्रम के लिए दो दिन की छुट्टी रहेगी। अगर हिन्दू त्योहारों की बात करें तो तीज, तिजिया, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि बसंत पंचमी, मजदूर दिवस और गांधी जयंती पर कोई छुट्टी नहीं रहेगी। अब इसी बात को लेकर  राज्य में बवाल मचा हुआ है। नीतीश कुमार की सरकार को विरोधी दलों के नेताओं ने घेरा है। बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार को घेरते हुए कहा है कि बिहार को इस्लामिक स्टेट घोषित कर देना चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने कहा भविष्य में नीतीश कुमार और लालू यादव को मोहम्मद नीतीश और मोहम्मद लालू कहा जाना चाहिए।

ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर नीतीश कुमार द्वारा स्कूलों में जो छुट्टी के लिए कैलेंडर जारी किया गया है। क्या वह सही है? आखिर बिहार की महागठबंधन सरकार ने हिन्दुओं के छुट्टियों पर कैंची चलाकर क्या हासिल करना चाहती है। “कुर्सी कुमार”, और पलटीमार के नाम से मशहूर नीतीश कुमार क्या सही में मोहम्मद नीतीश कहलाएंगे? क्या वोट के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण सही है। क्या नीतीश कुमार के इस निर्णय को भारतीय जनमानस स्वीकार कर पाएगा। यह बड़ा सवाल है ? वहीं, सवाल यह भी है कि आखिर किस आधार पर नीतीश कुमार ने यह निर्णय लिया है ? क्या नीतीश कुमार मानसिक दिवालियापन के शिकार हो चुके है। अगर ऐसा है तो उनका यह निर्णय इसी बात को दर्शाता है। अगर नीतीश कुमार मानसिक दिवालियापन के शिकार नहीं होते तो ऐसा निर्णय नहीं लेते। ऐसा हम नहीं कह रहें हैं, बल्कि बिहार विधानसभा में  जनसंख्या कंट्रोल पर खुद नीतीश कुमार पेट सहलाते हुए अनकंट्रोल हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने माफ़ी भी मांगी थी। लेकिन माफ़ी मांगते हुए भी नीतीश कुमार आपा खो चुके थे।

नीतीश कुमार का यह निर्णय जेडीयू के डूबती नाव में आखिरी कील है जिसे डूबने से कोई नहीं बचा सकता है। नीतीश कुमार का जाति आधारित जनगणना पर बिहार की और देश की जनता मुहर लगा सकती है। लेकिन, नीतीश कुमार के “मुस्लिम छुट्टी” वाले कृत्य पर कोई हिंदू नीतीश कुमार को वोट देने से पहले सौ बार सोचेगा। शायद नीतीश कुमार को कांग्रेस के हश्र की जानकारी नहीं है। इसलिए उन्होंने वोट की फसल काटने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण किया है। आज गांधी परिवार से लेकर कांग्रेस का हर नेता खुद को हिन्दू दिखाने और कहलाने के लिए वह सब कर रहे हैं जो एक नौटंकी करने वाला कलाकार करता है। शायद नीतीश कुमार को दिखाई नहीं दे रहा हो, या वे जानबूझकर इसे नजरअंदाज कर रहें हैं, शायद नीतीश कुमार को अपने फैसले पर अत्यधिक आत्मविश्वास हो, लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि नीतीश कुमार अपने फैसले से ज्यादा वोट हासिल कर पाएंगे। क्योंकि, उनका फैसला उस जनता के खिलाफ है, जिसके मन मस्तिष्क में अपने त्योहारों के लिए अपार श्रद्धा है। लेकिन नीतीश कुमार ने उन पर कैंची चलाकर यह साबित करने की कोशिश की है कि वे हिन्दू विरोधी हैं। और आने वाले समय में नीतीश कुमार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

हाल ही में नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना कराया था। इसमें 81 प्रतिशत से अधिक  हिन्दू हैं, जबकि 17 प्रतिशत के आसपास मुस्लिम हैं। सवाल यह है कि क्या इसी 17 प्रतिशत मुस्लिमों का वोट लेने के लिए नीतीश कुमार ने मुस्लिम कार्ड चला है।  दरअसल, माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना कराकर यह मान कर चल रहे हैं कि पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग उनके साथ है जो क्रमशः लगभग 27 और 36 प्रतिशत है। पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के लिए नोटिफिकेशन भी जारी किया गया है. इसी के आधार पर नीतीश कुमार की गणित बता रही है कि उनके पक्ष में मुस्लिम, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग है, अगर तीनों वर्गों को मिला दें तो वे 80 प्रतिशत हो जाते हैं। तो कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार इसी गणित के आधार पर “मुस्लिम छुट्टी” कार्ड चला है। अगर ये तीनों साथ आ गए तो नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में करिश्मा करने में कामयाब होंगे। लेकिन क्या नीतीश कुमार की गणित सही निशाने पर हैं। यह उतना ही बड़ा सवाल है,जितना बड़ा नीतीश कुमार मानकर चल रहे हैं। मगर क्या, नीतीश कुमार का यह दांव कामयाब होगा यह बड़ा सवाल है।

वैसे चुनावी मौसम में मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर नीतीश कुमार ही नहीं चल रहे हैं। बल्कि कांग्रेस और तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति भी चल रही है। तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में के चंद्रशेखर राव ने मुस्लिम समुदाय के लिए आईटी पार्क बनाये जाने का ऐलान किया है। इसी तरह से कांग्रेस ने भी पिछले दिनों जब तेलंगाना में अपना घोषणा पत्र जारी किया। तब उसने अल्पसंख्यक घोषणा पत्र जारी किया। जिसको कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन, इमरान प्रतापगढ़ी और सलमान खुर्शीद द्वारा लांच किया गया। जब इस पर सवाल उठा तो कांग्रेस ने कहा कि सिर्फ अल्पसंख्यक मुस्लिम ही नहीं है ? लेकिन सवाल उठता है कि आखिर जब अल्पसंख्यक घोषणा पत्र जारी किया गया तो तीन लोग मुस्लिम ही क्यों थे ? इसका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है।

नीतीश कुमार मुस्लिमों के लिए छुट्टियों में ही बड़ोत्तरी नहीं किए हैं, बल्कि उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाकों के स्कूलों में रविवार के बदले शुक्रवार को छुट्टी देने का भी निर्णय लिया है। सवाल यह है कि आखिर छुट्टियों में हिन्दू मुस्लिम क्यों? एक ओर जहां राजनीति दल बीजेपी को हिन्दुओं की पार्टी कहती है, पर बीजेपी केवल हिन्दुओं के लिए ही कोई योजना नहीं बनाती है, बल्कि वह जो योजना बनाती है वह सभी के लिए होता है। किसी एक वर्ग के लिए नहीं होता है। अब सवाल यह कि क्या चुनावी बयार में नीतीश कुमार की बिहार में डूबती नईया पार होगी ? क्या नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव की कठपुतली बन गए है? क्या यह प्लान लालू यादव का है ? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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