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Thursday, June 19, 2025
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बढ़ती जनसंख्या: बोझ या संपदा, कैसे बने देश की शक्ति?

चीन ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति को मजबूत किया और सस्ते श्रम के साथ उच्च उत्पादन क्षमता का लाभ उठाया। इससे न केवल आर्थिक विकास हुआ, बल्कि वैश्विक बाजारों में चीन की हिस्सेदारी भी बढ़ी।

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1.4 अरब से अधिक आबादी वाले देश भारत को दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश माना जाता है। यह जनसंख्या, विशेष रूप से इसकी युवा शक्ति, देश के लिए एक अभूतपूर्व अवसर प्रस्तुत करती है, जिसे जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) के रूप में जाना जाता है। लेकिन यह लाभांश तभी प्राप्त किया जा सकता है जब इसे सही नीतियों, शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार सृजन के माध्यम से उपयोग किया जाए। यदि इसका प्रबंधन ठीक नहीं किया गया, तो यह विशाल जनसंख्या अभिशाप बन सकती है। जिससे बेरोजगारी, गरीबी और सामाजिक अस्थिरता बढ़ सकती है।

जनसांख्यिकीय लाभांश उस आर्थिक विकास की संभावना को दर्शाता है जो तब उत्पन्न होती है जब किसी देश की कार्यशील आयु (15-64 वर्ष) की जनसंख्या, गैर-कार्यशील आयु (14 वर्ष से कम और 65 वर्ष से अधिक) की जनसंख्या से अधिक होती है। भारत में, 2020 तक औसत आयु केवल 28 वर्ष थी, जो इसे विश्व के सबसे युवा देशों में से एक बनाती है।

इसके विपरीत, चीन और विकसित देशों जैसे जापान, अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में औसत आयु क्रमशः 37, 45 और 49 वर्ष है। भारत की यह युवा शक्ति अगले कुछ दशकों तक देश की आर्थिक प्रगति को बढ़ावा दे सकती है, बशर्ते इसे सही दिशा में उपयोग किया जाए।

चीन ने 1980 और 1990 के दशक में अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को प्रभावी ढंग से उपयोग करके आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर कदम रखा। 1981 में, चीन ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए एक बच्चा नीति लागू की। इससे जनसंख्या वृद्धि की दर कम हुई और कार्यशील आयु की जनसंख्या का अनुपात बढ़ा।

हालांकि, इस नीति के दीर्घकालिक प्रभाव, जैसे कि वृद्ध जनसंख्या और लैंगिक असंतुलन, अब चुनौतियां बन गए हैं। चीन ने अपनी युवा जनसंख्या को शिक्षित और कुशल बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया। आज, चीन की साक्षरता दर 97% है, जबकि भारत की 75% है।

तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पर ध्यान देने से चीन ने अपने कार्यबल को वैश्विक मांगों के लिए तैयार किया। चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को कृषि से औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित किया। बड़े पैमाने पर विनिर्माण इकाइयों की स्थापना और शहरीकरण ने लाखों लोगों को रोजगार प्रदान किया। यह भारत के लिए एक सबक है, जहां विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार वास्तव में घट रहा है।

चीन ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति को मजबूत किया और सस्ते श्रम के साथ उच्च उत्पादन क्षमता का लाभ उठाया। इससे न केवल आर्थिक विकास हुआ, बल्कि वैश्विक बाजारों में चीन की हिस्सेदारी भी बढ़ी।

चीन ने सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और अन्य बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया, जिसने औद्योगिक विकास को समर्थन दिया और विदेशी निवेश को आकर्षित किया। भारत की तुलना में, जहां बुनियादी ढांचा अभी भी अपर्याप्त है, चीन का दृष्टिकोण अधिक प्रभावी रहा।

भारत की विशाल और युवा जनसंख्या कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जो इसे अभिशाप बनने की ओर ले जा सकती हैं। हर साल लगभग 12 मिलियन युवा भारतीय कार्यबल में शामिल होते हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था केवल 7 मिलियन नौकरियां पैदा कर पाती है। इससे बेरोजगारी और अल्परोजगार की समस्या बढ़ रही है।

उदाहरण के लिए, मुंबई में हाल ही में 8,000 पुलिस पदों के लिए 650,000 आवेदन आए, जो नौकरी की कमी को दर्शाता है। भारत में 95% इंजीनियरिंग स्नातक सॉफ्टवेयर विकास जैसे ज्ञान-आधारित रोजगार के लिए अनुपयुक्त हैं।

इसके अलावा, तीन-चौथाई से अधिक स्नातकों को बुनियादी अंग्रेजी बोलने में कठिनाई होती है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बड़ी बाधा है। भारत सरकार शिक्षा पर अपने जीडीपी का केवल 3% और स्वास्थ्य पर 1.2% खर्च करती है, जो चीन (5.5%) और ब्राजील (9%) जैसे देशों से काफी कम है। इससे मानव पूंजी का विकास बाधित होता है।

भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर उपलब्ध है। केरल की जनसंख्या पहले से ही वृद्ध हो रही है, जबकि बिहार में कार्यशील आयु की जनसंख्या 2051 तक बढ़ती रहेगी।

भारत को प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में निवेश बढ़ाना चाहिए। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम जैसी पहल को और मजबूत करना होगा। उद्योग-अकादमिक सहयोग से आधुनिक नौकरियों की मांग के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जा सकती है। भारत को विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना होगा, जैसा कि चीन और पूर्वी एशियाई देशों ने किया। श्रम-गहन विनिर्माण को बढ़ावा देने से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित होंगे। इसके लिए नीतिगत सुधार और व्यापार करने में आसानी पर ध्यान देना होगा।

भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर हाल के वर्षों में घटी है। लचीली नीतियां, जैसे कि ऑनलाइन प्रशिक्षण और घर से काम करने की सुविधा, महिलाओं को कार्यबल में शामिल करने में मदद कर सकती हैं। समान वेतन और कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। भारत को सड़कों, रेलवे, और डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाना होगा। इससे न केवल रोजगार सृजन होगा, बल्कि विदेशी निवेश भी आकर्षित होगा।

बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उत्पादक कार्यबल को सुनिश्चित करती हैं। भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना होगा और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की पहुंच में सुधार करना होगा। हालांकि भारत में प्रजनन दर घट रही है, फिर भी परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने की जरूरत है।

शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से अवांछित प्रजनन को कम किया जा सकता है। यदि भारत इन क्षेत्रों में सही नीतियां लागू करता है, तो उसकी जनसंख्या निश्चित रूप से एक वरदान बनेगी, न कि अभिशाप। भारत की विशाल और युवा जनसंख्या एक ऐसी संपत्ति है जो इसे वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बना सकती है। समय की मांग है कि भारत अपनी जनसांख्यिकीय शक्ति को पहचाने और इसे आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए उपयोग करे।

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