ईजऱाइल के ऑपरेशन राइजिंग लायन के जवाब में ईरान ने ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3 लांच किया। हमलें के पहले चरण में ईरान ने इजरायल पर ताबतोड़ ड्रोन हमले किए और ड्रोन के साथ की करीब सौ मिसाइलें इजराइल के मुख्य शहरो और महत्वपूर्ण इलाकों को निशाना बनाते हुए दागी गई थी। वहीं आयरन डोम पर काफी लोड के बाद इजरायल की भूमि पर दो से तीन बैलिस्टिक मिसाइल्स गिरी इन मिसाइल्स के रिहाईशी इलाकों में गिरने से 40 लोगों के घायल होने और 2 लोगों के मौत की खबर है।
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्वीट कर उनकी और अमेरिका की मंशा क्या है—उनके अगले कदम क्या होने वाले है इस बात का खुलासा कर दिया है।उन्होंने सीधे तौर पर ईरान के लोगों से संपर्क किया है, ईरान के लोगों से बात की है, जिसमें उन्होंने कहा है “हम इतिहास में हमारे सबसे बड़े सैन्य ऑपरेशनों में से एक के बीच में हैं – ऑपरेशन राइजिंग लायन! लगभग 50 वर्षों से हमें दबा रहे इस्लामी शासन ने मेरे देश – इसराइल राज्य को नष्ट करने की धमकी दी है। इसराइल के सैन्य ऑपरेशन का उद्देश्य इस परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल खतरे को समाप्त करना है।” लेकीन अपने इस बयान में उन्होंने महत्वपूर्ण बात की,”के रेजीम को नहीं पता कि क्या हुआ—या क्या होगा। ईरान का राष्ट्र और इसराइल का राष्ट्र, कुरुष महान के दिनों से सच्चे दोस्त रहे हैं। और अब समय आ गया है कि आप अपने झंडे के इर्द-गिर्द एकजुट हों, अपने ऐतिहासिक विरासत के लिए खड़े हों, एक बुरे, दमनकारी शासन से अपनी स्वतंत्रता के लिए एकजुट हो। यह कभी भी इतना कमजोर नहीं रहा है। यह आपका अवसर है खड़े होने का, अपनी आवाज़ को सुना जाने का।”
यह कहते हुए उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात की है की “इसराइल की लड़ाई ईरानी लोगों के खिलाफ नहीं है। उन्होंने एक बात भी कही की ईरानी जनता कर इजरायली की लड़ाई एक ही दुश्मन के खिलाफ है, एक ही हत्यारे शासन के खिलाफ है” जान लें की यह कोई पहली बार नहीं है की ईरान के प्रधानमंत्री इजरायली नागरिकों से सीधे तौर पर बात कर उन्हें यह बता रहें है की उनकी लड़ाई ईरानी शासन के खिलाफ है इजरायली नागरिको के नहीं।
जब कल ईरान में इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत हमले किए थे, तब उन्होंने प्रिसीजन स्ट्राइक किए, केवल उन सैन्य ठिकानों, और परमाणु व्यवस्थाओं को निशाना बनाया गया जो इजरायल के लिए घातक है। इजरायली हमले में ईरानी सेना प्रमुख मुहम्मद बाघेरी के साथ ही ईरान की सबसे इलाइट फ़ोर्स माने जाने वाली इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कोर्स के हुसैन सलामी को मारा गया। साथ ही दो वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिकों को भी मारा गया। यह लोग इजरायली फोर्सेस के डर से रिहायशी इलाकों में रहते थे। इस प्रकार से रहते थे, की आम लोगों के कारण इजरायल इन्हें ढूंढ नहीं पाएगा और ढूंढ ले तो चुनचुनकर मार नहीं पाएगा। लेकीन जहां चीज़ें मुश्किलों से भरी होती है, मोसाद वहीं खड़ी होती है।
इजरायली ख़ुफ़िया नेटवर्क से निकली अचूक जानकारी और इजरायली एयर फ़ोर्स ने किए अचूक हमलें में इन सेना अधिकारियों को अचूकता से मारा गया। आम लोगों को खरोंच भी नहीं आयी। इजरायल की इस नीति के पीछे कारण साफ़ है की इजरायल की दुश्मन ईरान की इस्लामी रिजीम है, ईरान के लोग नहीं, और ईरान के लोगों के मन में भी ईरान की यह रिजीम उनकी दुश्मन है।
ईरान की जनसँख्या करीब आठ से नौ करोड़ के बीच है। इनमें अलग-अलग नस्ल के लोग है, मूलतः ईरान में 61 प्रतिशत परशियन है जिनमें मुख्यतः शिया मुसलमान, 16 प्रतिशत अज़हरी है, 10 प्रतिशत कूर्द है, करीब 6 प्रतिशत लूर्स जो झगरोस पर्वतों में रहते है और बाकी 2 प्रतिशत बलोच और 2 से ४ प्रतिशत अरबी सुन्नी मुस्लिम है। ईरान की पूरी जनसँख्या मुस्लिम होने के बावजूद कूल 60 प्रतिशत ईरानी नागरिक ईरान की इस्लामी सत्ता से नाराज है, वो इस सत्ता को समय पाते ही पलटना चाहती है।
ईरान के शाह जब राजगद्दी पर थे उस समय ईरान बेहद लिबरल और प्रोग्रेसिव देश हुआ करता था, इस देश में लोगों को, विशेषता से महिलाओं को स्वतंत्रता थी, पढ़ने लिखने के साथ ही काम करने की आजादी थी, हिजाब के बंधन नहीं थे, शरिया के अनुसार रेपिस्टों को संरक्षण और हिजाब न पहनने वाली महिलाओं को मौत की सजाएं नहीं थी। 1976 तक जब तक ईरान में इस्लामी रिजीम नहीं आई तभी तक इजरायल और ईरान के संबंध काफी अच्छे थे। लेकीन रूहोल्ला खोमेनी के नेतृत्व में ईरान ने अपने राजा की सत्ता पलट दी और इस देश में इस्लाम के नाम पर इजरायल को शत्रु घोषित किया—इजरायल को इस्लाम का शत्रु घोषित कर दिया।
गमान के वर्ष 2023 के अतंराष्ट्रीय सर्वे के अनुसार करीब 80 प्रतिशत ईरानी लोग अनेकों कारणों से ईरान की इस्लामी रिजीम से पीछा छुड़वाना चाहते है। कुछ लोग ईरान की सेना को पसंद नहीं करते, बड़ी संख्या में इस्लामी शासकों को पसंद नहीं करते, कई लोग ऐसे है जो ईरान के शासन को तो पसंद करते है लेकिन सेना की बड़ी पोजीशन पर बैठकर बाकियों की जगह रोकने वालों को पसंद नहीं करते, ऐसे ही ईरान में कई परशियन है जो अपने ज़ोरास्ट्रीयन रूट्स को याद करते है, और अपने मूल धर्म की ओर लौटना चाहते है। लेकीन ईरान की इस्लामी रिजीम जब तक होगी तभी तक वो आज़ादी नहीं पा सकेंगे।
इस प्रकार जब तक ईरान के आम लोग इजरायल और अमेरिका का साथ नहीं देंगे वो खोमेनी की रिजीम नहीं बदल पाएंगे।
ईरानी PM इब्राहीम रईसी एक हेलीकॉप्टर क्रैश में मारे गए थे, जिसपर कई सूत्र बतातें है की असल में यह इजराइली ख़ुफ़िया एजेंसी का ऑपरेशन था जिसमें अजहरी लोगों ने ईरान की मदद की थी। अगर यह सच है तो कोई अचरज की बात नहीं है। तेहरान में हमास चीफ इस्माइल हनिया के आराम कक्ष में घुसकर उसे भी निपटाया गया था। वो भी इजरायल ने अपने ख़ुफ़िया तंत्र के जरिए ही कर दिखाया था। ईरान में जो इजरायल करता है, वो तभी तक आसान नहीं है जब तक उनके असेट्स की पहुंच काफी अंदर तक हो। यानी बहुसंख्य ईरान के लोग इजरायल का साथ देने के लिए तैयार भी है।
अमेरिका और इजरायल फ़िलहाल ईरान के लोगों को यही बता रहें है की वो किसी भी समय ईरानी रिजीम की सत्ता पलटने के लिए आ रहें है और वो जब सत्ता पलटेंगे तो ईरान के आम लोगों को इस्लामी सत्ता को गुडबाय बोलकर एक लोकतांत्रिक और स्वतंत्र व्यवस्था के स्वागत के लिए तैयार रहना होगा, इससे पहले उन्हें ईरान के इस्लामी रिजीम से संघर्ष से निपटने की तैयारी दिखानी होगी।
ऑपरेशन राइजिंग लायन के शुरुवात में बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था की यह ऑपरेशन खतरे को पूरी तरह निरस्त करने तक चलता रहेगा यानी ऑपरेशन सिंदूर की तरह, ऑपरेशन राइजिंग लाइन जारी है, साथ ही ईरान में अभी भी परमाणु संरक्षण और परमाणु संशोधन का एक केंद्र फोर्दो में काम कर रहा है। जब तक यह परमाणु व्यवस्था और ईरानी रिजीम होगी तभी तक इजरायली में शांति बहाल नहीं होगी।
वहिं इजरायल को अपना दूसरा सबसे बड़ा दुश्मन समझने वाला पकिस्तान ईरान युद्ध में इजरायल का साथ कैसे दे रहा है, इसपर हम जल्द ही वीडिओ लाएंगे। तब तक क्या ईरान की सत्ता इजरायल गिरा पाएगी, आपको क्या लगता है कमेंट सेक्शन में जरूर बताइए, और वीडिओ अच्छी लगी हो तो लाइक कीजिए। न्यूज़ डंका हिंदी को सब्स्क्राइब कीजिए।
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