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भारत–यूरोपीय संघ में तेज़ी से बढ़ी व्यापार वार्ता, तीन माह में समझौते की उम्मीद!

यूरोपीय संघ का रुख वैश्विक अस्थिरता से अपने बाजार की रक्षा करने पर केंद्रित है

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भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर बातचीत निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। वनवर्ल्ड आउटलुक की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों पक्ष अगले तीन महीनों के भीतर समझौते को अंतिम रूप देने का लक्ष्य बना रहे हैं। यह व्यापारिक समझौता कृषि, स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) और बाजार पहुंच (मार्केट एक्सेस) जैसे अहम मुद्दों को शामिल करेगा और इसके वैश्विक व्यापार पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वार्ता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू किए गए नए टैरिफ आक्रमण के बाद तेज़ी से आगे बढ़ी है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों के चलते यूरोप अब एशिया में विश्वसनीय साझेदार की तलाश कर रहा है और भारत इस रणनीति में सबसे अहम कड़ी बनकर उभरा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “जहां यूरोपीय संघ का रुख वैश्विक अस्थिरता से अपने बाजार की रक्षा करने पर केंद्रित है, वहीं भारत का दृष्टिकोण रणनीतिक है। नई दिल्ली इस समझौते को वैश्विक आर्थिक आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति के रूप में देखती है, न कि किसी मजबूरी के रूप में। यह सौदा भारत के उस दृष्टिकोण का हिस्सा है जिसमें वह नई व्यापार व्यवस्था को आकार देने वाला खिलाड़ी बनना चाहता है, न कि सिर्फ उसका अनुयायी।”

रिपोर्ट के अनुसार, भारत का विस्तृत विनिर्माण क्षेत्र, तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था, और मजबूत घरेलू मांग उसे यूरोपीय कंपनियों के लिए चीन के विकल्प के रूप में एक आकर्षक बाजार और उत्पादन केंद्र बनाते हैं। वहीं, यूरोप की नीति अब रूस और चीन पर निर्भरता घटाने की ओर झुक रही है, जिससे भारत उसकी विविधीकरण रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है, भले ही नई दिल्ली की मॉस्को से साझेदारी अभी भी बरकरार है।

हालांकि, भारत ने EU के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) के तहत प्रस्तावित “सस्टेनेबिलिटी क्लॉज” का कड़ा विरोध किया है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने इन प्रावधानों को विकासशील देशों को ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिए अनुचित रूप से दंडित करने वाला बताया है।

यदि यह व्यापार समझौता तय समय में हो जाता है, तो यह भारत की वैश्विक व्यापार नियमों को आकार देने में निर्णायक उपस्थिति का संकेत होगा। वहीं, अगर वार्ता आगे खिंचती है, तो यह दो बराबर पक्षों के बीच जटिल लेकिन यथार्थवादी बातचीत को दर्शाएगी।

रिपोर्ट का निष्कर्ष स्पष्ट है, यह समझौता सिर्फ व्यापारिक नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की आर्थिक परिपक्वता और आत्मविश्वास का प्रतीक होगा।

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