इंडोनेशिया ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण अभियान में एक बड़ा कदम उठाते हुए फ्रांस के राफेल की बजाय चीन के 42 J-10C मल्टीरोल फाइटर जेट खरीदने का निर्णय लिया है। इस सौदे की अनुमानित कीमत 9 अरब डॉलर है और इसे वित्त मंत्रालय से मंजूरी भी मिल गई है। इंडोनेशियाई रक्षा मंत्री सजाफ्री सजामसोद्दीन ने कहा कि यह कदम देश की वायु शक्ति को मजबूत करने की दिशा में ऐतिहासिक महत्व रखता है।
राफेल और J-10C दोनों ही 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं, लेकिन दोनों में तकनीकी क्षमताओं और लागत का बड़ा अंतर है। फ्रांस का राफेल ट्विन इंजन और अत्याधुनिक Thales AESA रडार व मीटियोर मिसाइलों से लैस है, जबकि चीन का J-10C हल्का, तेज और किफायती है, जिसमें KLJ-7A AESA रडार और PL-15 मिसाइलें हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, राफेल तकनीकी रूप से श्रेष्ठ है, लेकिन J-10C की कम कीमत और आसान रखरखाव ने इंडोनेशिया को आकर्षित किया।
इंडोनेशिया ने कम लागत में अधिक क्षमता हासिल करने की रणनीति अपनाई। फ्रांसीसी राफेल की कीमत लगभग 120 मिलियन डॉलर प्रति विमान है, जबकि J-10C सिर्फ 55–60 मिलियन डॉलर में उपलब्ध है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से इंडोनेशिया दोगुने विमान आधी कीमत पर हासिल कर रहा है। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया कि चीन ने इस सौदे को बढ़ावा देने के लिए राजनयिक चैनलों के जरिए फ्रांस-विरोधी अभियान चलाया।
इंडोनेशिया का यह कदम चीन के लिए बड़ी सफलता माना जा रहा है। J-10C का यह दूसरा निर्यात सौदा है, पहला पाकिस्तान के साथ हुआ था। इस डील से चीन ने न केवल दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ाई, बल्कि फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों के सैन्य बाजार में भी चुनौती पेश की। विश्लेषक बाबाक तगवाई के अनुसार, इंडोनेशिया किसी एक गुट में शामिल नहीं होना चाहता और विविध साझेदारियों के जरिए खुद को स्वतंत्र रखता है।
इंडोनेशिया की विदेश नीति लंबे समय से गुटनिरपेक्ष रही है। वर्तमान में उसकी वायुसेना के पास रूस के Su-27 और Su-30, अमेरिका के F-16, दक्षिण कोरिया के T-50 और फ्रांस के राफेल फाइटर जेट हैं। J-10C के शामिल होने के बाद इंडोनेशिया की वायु शक्ति और अधिक विविध और सशक्त हो जाएगी।
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