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ईरान के गुम हुए यूरेनियम को लेकर बढ़ी चिंता; अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने किया नया दावा !

'यूरेनियम अब ज़मीन के नीचे दबा हो सकता है'

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ईरान के तीन प्रमुख यूरेनियम संवर्धन केंद्रों पर अमेरिका द्वारा किए गए हमलों के बाद अब वहां मौजूद 60 प्रतिशत तक संवर्धित लगभग 400 किलोग्राम यूरेनियम के लापता होने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंता जताई जा रही है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने कहा है कि हो सकता है यह यूरेनियम अब “ज़मीन के नीचे दबा हुआ हो।”

फॉक्स न्यूज से बातचीत में वांस ने कहा, “हमारा लक्ष्य यूरेनियम को दफनाना था, और मुझे लगता है कि वह दफन हो चुका है। हमने केवल उसे निष्क्रिय करना नहीं चाहा, बल्कि ईरान की उस क्षमता को भी खत्म करना चाहा जिससे वह इस यूरेनियम को परमाणु हथियार में बदल सके।”

ईरान के जिस फोर्डो संवर्धन केंद्र पर हमला हुआ था, वह गहराई में स्थित है और वहां हुए नुकसान का सटीक आकलन फिलहाल संभव नहीं हो सका है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रोसी ने कहा कि “हम फिलहाल वहां की स्थिति की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सकते।”

हालांकि, उपग्रह से मिली तस्वीरों में फोर्डो साइट के बाहर लगभग दर्जन भर ट्रक खड़े दिखे हैं, जिससे आशंका है कि ईरान ने वहां से यूरेनियम और अन्य संवेदनशील उपकरणों को हमलों से पहले ही हटा दिया था।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, दो इजरायली अधिकारियों ने दावा किया है कि ईरान ने हमलों से पहले ही बड़ी मात्रा में यूरेनियम और उपकरण अन्य स्थानों पर शिफ्ट कर दिए थे। ईरान ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि “हमले वाली साइट्स पर ऐसा कोई रेडियोएक्टिव मटेरियल नहीं था जो विकिरण फैला सके।”

एनबीसी से एक अलग बातचीत में अमेरिकी उपराष्ट्रपति वांस ने स्पष्ट किया कि “हम ईरान से युद्ध में नहीं हैं, बल्कि उसके परमाणु कार्यक्रम से हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि वह यह नहीं बताएंगे कि ईरान के साइट्स पूरी तरह नष्ट हुए या नहीं, लेकिन उन्होंने भरोसा जताया कि “हमलों ने ईरान के परमाणु हथियार विकसित करने की प्रक्रिया को काफी पीछे धकेल दिया है।”

अभी तक IAEA या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर संवर्धित यूरेनियम लापता या गुप्त स्थान पर छिपाया गया है, तो यह गंभीर अंतरराष्ट्रीय संकट का संकेत हो सकता है। इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ पश्चिम एशिया में तनाव को और गहरा कर दिया है, बल्कि परमाणु सुरक्षा को लेकर वैश्विक स्तर पर नई बहस भी शुरू कर दी है।

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