अमेरिका के करीबी माने जा रहे पाकिस्तान ने ईरान के मुद्दे पर अचानक रुख बदलते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन और रूस के साथ एकजुटता दिखाई है। अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों की पाकिस्तान ने कड़ी आलोचना की है, जिससे वॉशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच उभर रही गर्मजोशी को बड़ा झटका लगा है।
बता दें कि कुछ ही दिन पहले पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में अहम मुलाकात हुई थी। इसे पाकिस्तान की ‘हकीकत में शक्तिशाली’ सेना और अमेरिका के बीच संबंधों की मजबूती के संकेत के तौर पर देखा जा रहा था। वाशिंगटन में मुनीर के लिए भव्य स्वागत और सुरक्षा प्रबंधों से यह संदेश भी गया कि अमेरिका पाकिस्तान को फिर से अपनी रणनीतिक साझेदारी में लाने को इच्छुक है।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में अमेरिका के खिलाफ खुलकर बोला। उन्होंने स्पष्ट कहा, “इस्लामाबाद ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिका की ओर से किए गए हमलों की कड़ी निंदा करता है।” अहमद ने यह भी बताया कि पाकिस्तान अपने मित्र चीन और सहयोगी रूस के साथ मिलकर इस हमले के विरुद्ध एक प्रस्ताव तैयार कर रहा है, जिसे सुरक्षा परिषद में पारित करवाने की कोशिश की जाएगी।
यह बैठक ईरान के आग्रह पर बुलाई गई थी, जिसमें अमेरिका द्वारा फोर्डो, नतांज और इस्फाहान स्थित परमाणु ठिकानों पर की गई बमबारी को लेकर गहरी चिंता जताई गई। पाकिस्तान ने इस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का स्पष्ट उल्लंघन करार दिया।
अहमद ने चेताया कि, “अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में चल रहे परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला सुरक्षा परिषद, IAEA और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के खिलाफ है।” पाकिस्तान ने परिषद से आग्रह किया कि 13 जून से हुए इन हमलों की “साफ-साफ निंदा की जाए और उन्हें पूरी तरह खारिज किया जाए।”
अहमद ने बयान में यह भी जोड़ा कि पाकिस्तान “इजरायल के कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा करता है।” साथ ही उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ मिलकर ईरान के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान का यह कदम अमेरिका के लिए एक झटका है, जो यह मानकर चल रहा था कि सैन्य चैनल के ज़रिए पाकिस्तान को अपने पाले में लाया जा सकता है। लेकिन सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान की खुली आलोचना ने दर्शा दिया कि इस्लामाबाद अभी भी बीजिंग और मॉस्को के रणनीतिक गठबंधन से हटने को तैयार नहीं है। पाकिस्तान का यह रुख न केवल अमेरिका-पाक संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन में भी एक नए मोड़ का संकेत देता है।
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