जहां आज (22 अप्रैल) अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत के ऐतिहासिक राजकीय दौरे पर मौजूद हैं, उसी वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की दो दिवसीय महत्वपूर्ण यात्रा के लिए रवाना हुए। इस समकालिक घटनाक्रम ने भारत की विदेश नीति में संतुलन, रणनीतिक प्राथमिकताओं और वैश्विक मंच पर उसकी सक्रिय भूमिका को एक बार फिर से रेखांकित कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री, महामहिम मोहम्मद बिन सलमान के निमंत्रण पर हो रही है। यह महज एक औपचारिक दौरा नहीं, बल्कि ऊर्जा, निवेश, रक्षा, और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में भारत-सऊदी साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का प्रयास है। खास बात यह है कि मोदी की यह तीसरी सऊदी यात्रा ऐसे समय हो रही है जब खाड़ी क्षेत्र वैश्विक भू-राजनीति के लिहाज से नए मोड़ पर खड़ा है और भारत की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है।
यात्रा से ठीक पहले पीएम मोदी ने कहा, “जेद्दा, सऊदी अरब के लिए रवाना हो रहा हूँ, जहाँ मैं विभिन्न बैठकों और कार्यक्रमों में भाग लूँगा। भारत सऊदी अरब के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को महत्व देता है। पिछले दशक में द्विपक्षीय संबंधों में उल्लेखनीय गति आई है। मैं सामरिक भागीदारी परिषद की दूसरी बैठक में भाग लेने के लिए उत्सुक हूँ। मैं वहाँ भारतीय समुदाय के साथ भी बातचीत करूँगा।”
एक ओर भारत-अमेरिका के रिश्ते उस समय और गहरे होते दिख रहे हैं जब उपराष्ट्रपति की भारत यात्रा सुर्खियों में है, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी का खाड़ी क्षेत्र की कूटनीति में व्यक्तिगत स्तर पर निवेश करना यह दर्शाता है कि भारत एक से अधिक वैश्विक ध्रुवों के साथ समान गंभीरता और कुशलता से संबंध निभा रहा है।
इस दौरे के जरिए मोदी सरकार यह संदेश देना चाहती है कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता केवल सैद्धांतिक बात नहीं, बल्कि क्रियान्वित होती प्राथमिकता है। ऐसे समय जब वैश्विक राजनीति बहुध्रुवीय बनती जा रही है, भारत का यह संतुलित कदम उसकी परिपक्व विदेश नीति की ओर इशारा करता है।
प्रधानमंत्री की यह यात्रा ऐसे वक्त में हो रही है जब हाल ही में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की भारत यात्रा के बाद द्विपक्षीय संबंधों ने एक नई रफ्तार पकड़ी है। यह दौरा दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी परिषद की दूसरी बैठक का भी हिस्सा है, जिससे रक्षा, ऊर्जा और व्यापार जैसे क्षेत्रों में ठोस परिणामों की उम्मीद की जा रही है।
बिना किसी राजनीतिक शोरगुल के, यह यात्रा भारत की विदेश नीति की गहराई और बहुपक्षीय संतुलन का एक लेकिन प्रभावशाली प्रदर्शन है।
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