2025-26 के केंद्रीय बजट में रिजर्व बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों से करीब 2.56 लाख करोड़ रुपये का लाभांश मिलने का अनुमान जताया गया था। हालांकि आरबीआई ने ही उम्मीद से काफी अधिक लाभांश सरकार को दे दिया है।
रिपोर्ट में आगे भारतीय रिजर्व बैंक के बड़े सरप्लस के पीछे की गतिविधियों के बारे में भी बताया गया। इसके अनुसार, केंद्रीय बैंक का सरप्लस मुख्य रूप से इसकी तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) संचालन और घरेलू और विदेशी प्रतिभूतियों की होल्डिंग से ब्याज के रूप में होने वाली आय के कारण संभव हो पाया।
पिछले साल 3 जून से 13 दिसंबर तक, आरबीआई एलएएफ के तहत अवशोषण मोड में था, जो बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता का प्रतीक है। हालांकि, दिसंबर के मध्य के बाद, तरलता की प्रवृत्ति उलट गई और आरबीआई ने मार्च 2025 के अंत तक सिस्टम में धन डालना शुरू कर दिया। 1 मार्च, 2025 तक प्रणाली तरलता फिर से अधिशेष में बदल गई, जो 1.2 लाख करोड़ रुपये पर थी। 16 दिसंबर 2024 और 28 मार्च 2025 के बीच औसत तरलता घाटा 1.7 लाख करोड़ रुपये था।
रिपोर्ट में आगे बताया किया वित्त वर्ष 2026 में स्थाई तरलता सरप्लस रहने की उम्मीद है। इससे ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) खरीद, आरबीआई के लाभांश हस्तांतरण और 25-30 अरब डॉलर के अनुमानित भुगतान संतुलन (बीओपी) सरप्लस जैसे कारकों से मदद मिल सकती है।
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