श्रीलंका की जेल में दो महीने से ज्यादा समय तक बंद रहने के बाद तमिलनाडु के 25 मछुआरे शनिवार को आखिरकार स्वदेश लौट आए। 23 फरवरी को श्रीलंकाई तटरक्षक बल द्वारा कथित रूप से समुद्री सीमा का उल्लंघन करने पर गिरफ्तार किए गए इन मछुआरों की रिहाई हाल ही में श्रीलंका की एक अदालत के आदेश पर हुई। कोलंबो से एयर इंडिया की उड़ान के ज़रिए चेन्नई पहुंचे इन मछुआरों के स्वागत के लिए राज्य सरकार ने व्यापक इंतजाम किए थे, और उन्हें उनके गृहनगर तक पहुंचाने के लिए विशेष परिवहन सुविधा उपलब्ध कराई गई।
रामेश्वरम के निवासी ये मछुआरे अपनी मोटरबोट से मछली पकड़ने निकले थे, लेकिन अनजाने में सीमाई क्षेत्र मंडपम के समीप श्रीलंकाई जलसीमा में प्रवेश कर गए। श्रीलंकाई तटरक्षक बल की गश्ती टीम ने आधी रात को उन्हें रोका और गिरफ्तार कर लिया। बाद में उन्हें अदालत में पेश किया गया और जेल भेज दिया गया। यह घटना कोई पहली नहीं है, बल्कि भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा विवाद की एक बार फिर से उठती परछाई है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पत्र लिखकर शीघ्र कार्रवाई की मांग की थी। इसके बाद भारतीय उच्चायोग ने श्रीलंकाई अधिकारियों से लगातार संपर्क में रहकर मछुआरों की रिहाई की दिशा में प्रयास किए। उच्चायोग ने उनकी कोलंबो में सुरक्षित ठहरने की व्यवस्था की, आपातकालीन प्रमाणपत्र जारी किए और भारत वापसी की यात्रा सुनिश्चित की।
हालांकि मछुआरों की वापसी राहत का कारण है, लेकिन यह समस्या जड़ से खत्म नहीं हुई है। वर्ष 2025 की शुरुआत से अब तक श्रीलंकाई अधिकारियों ने 119 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया है और 16 नौकाएं जब्त की हैं। यह आंकड़ा न केवल चिंता बढ़ाता है, बल्कि भारत-श्रीलंका संबंधों में बार-बार उभरने वाली इस समुद्री खाई को भी उजागर करता है।
मछुआरा संघ के प्रमुख वी.पी. सेसुराजा ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हिरासत में लिए गए मछुआरों के परिवार आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट जाते हैं। “कई मछुआरे श्रीलंका द्वारा लगाए गए भारी जुर्माने का भुगतान करने में असमर्थ हैं,” उन्होंने बताया।
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