यह शोध ‘सिटी ऑफ होप’ ने किया है। सिटी ऑफ होप के आर्थर रिग्स डायबिटीज एंड मेटाबॉलिज्म रिसर्च इंस्टीट्यूट में आणविक और सेलुलर एंडोक्राइनोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर किओंग (एनाबेल) वांग, ने कहा, “लोग उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियाँ खो देते हैं और शरीर में चर्बी बढ़ जाती है, चाहे उनका वजन वही रहता है।”
उन्होंने आगे कहा, “हमने यह पाया कि उम्र बढ़ने के साथ एक नई प्रकार की वयस्क स्टेम कोशिकाएं शरीर में आती हैं और पेट के आसपास नई चर्बी कोशिकाओं का उत्पादन तेज कर देती हैं।” वांग और उनकी टीम ने यूसीएलए लैब सह-लेखक शिया यांग के साथ मिलकर चूहों पर प्रयोग किए, जिनकी पुष्टि बाद में मानव कोशिकाओं पर की गई।
शोधकर्ताओं ने व्हाइट एडिपोज टिशू (डब्ल्यूएटी) पर ध्यान केंद्रित किया, जो उम्र से संबंधित वजन बढ़ने के लिए जिम्मेदार वसा ऊतक है। हालांकि यह सबको पता है कि उम्र के साथ वसा कोशिकाएं बड़ी हो जाती हैं, शोधकर्ताओं को शक था कि डब्ल्यूएटी नए वसा कोशिकाओं का उत्पादन भी करता है, जिसका मतलब है कि इसके बढ़ने की कोई सीमा नहीं हो सकती।
अपने अनुमान को परखने के लिए, शोधकर्ताओं ने एडिपोसाइट प्रोजेनिटर कोशिकाएं (एपीसीएस) पर ध्यान केंद्रित किया, जो डब्ल्यूएटी में पाई जाने वाली एक प्रकार की स्टेम कोशिकाएं हैं, जो वसा कोशिकाओं में बदलती हैं। टीम ने सबसे पहले युवा और अधिक उम्र वाले चूहों से एपीसीएस लेकर इन्हें दूसरे समूह के युवा चूहों में ट्रांसप्लांट किया। पुराने चूहों से निकाली गई एपीसीएस ने तेजी से ढेर सारी नई वसा कोशिकाएं बनाई।
जब टीम ने युवा चूहों से एपीसीएस को पुराने चूहों में ट्रांसप्लांट किया, तो इन स्टेम कोशिकाओं ने ज्यादा नई वसा कोशिकाएं नहीं बनाई। यह परिणाम यह साबित करते हैं कि पुराने एपीसीएस में खुद ही नए वसा कोशिकाएं बनाने की क्षमता होती है। यह निष्कर्ष दर्शाते हैं कि उम्र से संबंधित मोटापे से निपटने के लिए नई वसा कोशिकाओं का निर्माण नियंत्रित करना बहुत जरूरी है।
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