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Tuesday, June 24, 2025
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पादहस्तासन: एक योगी की तपस्या से जन्मा जीवन संतुलन का सूत्र

साधक अपने शरीर को मोड़कर हाथों से पैरों को छूता है, तब वह केवल एक शारीरिक मुद्रा नहीं बना रहा होता, बल्कि अपने भीतर के अहंकार को भी झुका रहा होता है।

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भारत की योग परंपरा केवल व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है—एक ऐसी विद्या जिसमें शरीर, मन और आत्मा का सामंजस्य साधा जाता है। इस दिव्य परंपरा का एक अद्भुत सूत्र है पादहस्तासन, जो न केवल शरीर को लचीला बनाता है, बल्कि मन को स्थिर और आत्मा को ऊर्ध्वगामी बनाता है।

संस्कृत में “पाद” यानी पैर और “हस्त” यानी हाथ—पादहस्तासन का शाब्दिक अर्थ ही जीवन की विनम्रता का प्रतीक बन जाता है। जब साधक अपने शरीर को मोड़कर हाथों से पैरों को छूता है, तब वह केवल एक शारीरिक मुद्रा नहीं बना रहा होता, बल्कि अपने भीतर के अहंकार को भी झुका रहा होता है। सिर का झुकाव पृथ्वी की ओर नमन का प्रतीक है—विनम्रता, समर्पण और मौन साधना का इशारा।

हठयोग की परंपरा में यह आसन विशेष स्थान रखता है। ऋषियों के अनुसार, यह आसन मूलाधार चक्र को सक्रिय करता है—जो शरीर की ऊर्जा का मूल स्रोत है। इससे न केवल आत्मिक ऊर्जा ऊपर की ओर प्रवाहित होती है, बल्कि यह साधक को ध्यान, एकाग्रता और अंततः समाधि की ओर भी अग्रसर करता है।

ऐसी मान्यता है कि पादहस्तासन सूर्य नमस्कार का अभिन्न अंग रहा है। जब सूर्य की पहली किरणें शरीर पर पड़ती हैं और साधक इस आसन के माध्यम से उन्हें आत्मसात करता है, तब यह आसन नाभि चक्र—मणिपुर चक्र—को सक्रिय कर आत्मविश्वास, ऊर्जा और पाचन शक्ति को सुदृढ़ करता है। साथ ही यह स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करता है, जिससे भावनात्मक स्थिरता और रचनात्मकता जागृत होती है।

प्राचीन ग्रंथ हठयोग प्रदीपिका और घेरंड संहिता में भी पादहस्तासन का उल्लेख मिलता है। इसे ऐसा आसन कहा गया है जो शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालकर जीवन शक्ति का संचरण करता है। यह केवल व्यायाम नहीं, एक साधना है—एक ऐसा अनुष्ठान जो आधुनिक जीवन की भागदौड़ में आत्मिक ठहराव प्रदान करता है।

एक सुंदर लोककथा में वर्णन आता है कि एक योगी ने पेड़ों की लचक देखकर यह आसन विकसित किया। उसने देखा कि जैसे वृक्ष हवा के साथ झुकते हैं, वैसे ही मानव शरीर को भी प्रकृति की लय में झुकना चाहिए—लचीलापन, स्वीकार्यता और संतुलन का प्रतीक बनकर। यह कथा बताती है कि योग प्रकृति से सीखा गया विज्ञान है, न कि मानव निर्मित प्रयोग।

आज, जब योग विश्व स्तर पर स्वास्थ्य का पर्याय बन चुका है, तब पादहस्तासन जैसे पारंपरिक आसनों की पुनः प्रतिष्ठा समय की आवश्यकता है। यह केवल शरीर को नहीं, जीवन को साधता है—और शायद यही कारण है कि एक साधारण-सा दिखने वाला यह आसन, एक योगी की तपस्या का अमूल्य फल बन गया।.

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