थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने 27 मई को झांसी के पास स्थित बबीना फील्ड फायरिंग रेंज में स्वदेशी तकनीक से विकसित यूएएस (मानव रहित विमान प्रणाली), काउंटर-यूएएस और लुटरिंग म्यूनिशन्स का निरीक्षण किया। इस मौके पर डीआरडीओ और भारतीय रक्षा उद्योग से जुड़ी प्रमुख कंपनियों ने अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीकों का प्रदर्शन किया, जिनका उद्देश्य भारतीय सेना की मारक क्षमता को बढ़ाना और युद्ध के मैदान में सटीकता से हमले सुनिश्चित करना है।
इन प्रणालियों को खासतौर पर पर्वतीय, रेगिस्तानी और वन क्षेत्रों में प्रभावी सैन्य संचालन के लिए डिज़ाइन किया गया है। जनरल द्विवेदी ने इन नवाचारों की सराहना करते हुए कहा कि स्वदेशी प्रयास भारत की आत्मनिर्भर रक्षा रणनीति को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल भारतीय सेना को भविष्य के युद्धों के लिए बेहतर रूप से तैयार करेगी।
गौरतलब है कि हाल ही में संपन्न ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पहली बार युद्ध में देश में निर्मित ‘लुटरिंग म्यूनिशन्स’ (आत्मघाती ड्रोन) का प्रयोग किया। इन ड्रोनों ने एक साथ कई पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला कर उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, यह हमला पाकिस्तानी सेना के एयर डिफेंस सिस्टम और रडार यूनिट्स को निशाना बनाकर किया गया था, जिसमें लाहौर स्थित एचक्यू-9 एयर डिफेंस यूनिट भी शामिल थी।
ऑपरेशन के दौरान ‘हारोप’ ड्रोन्स ने भी पाकिस्तान के कराची और लाहौर जैसे प्रमुख शहरों में दुश्मन के रक्षा तंत्र को निशाना बनाया। ये ड्रोन मूल रूप से इजराइली तकनीक पर आधारित हैं लेकिन अब भारत में ही निर्मित किए जा रहे हैं। इनके सफल संचालन ने यह साबित कर दिया है कि भारत न केवल विदेशी तकनीक को आत्मसात कर रहा है, बल्कि उसे स्वदेशी रूप में परिवर्तित कर के युद्ध में सफलतापूर्वक इस्तेमाल भी कर रहा है।
वहीं पाकिस्तान की बात करें तो वह अब भी आधुनिक हथियारों और ड्रोनों के लिए चीन और तुर्की पर निर्भर है। रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान को चीन और तुर्की से जो ड्रोन मिले हैं, वे भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम के सामने टिक नहीं पाए। इससे भारत की तकनीकी बढ़त स्पष्ट रूप से सामने आई है।
भारतीय सेना की यह प्रगति ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाओं को मजबूती देने वाली है। जनरल द्विवेदी द्वारा किए गए इस निरीक्षण से यह संकेत मिलता है कि भारतीय सेना न केवल भविष्य की लड़ाइयों के लिए तैयार हो रही है, बल्कि अब हथियारों और तकनीकी उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भरता को भी पीछे छोड़ रही है।
यह निरीक्षण और युद्ध में तकनीकी सफलताएं यह दर्शाती हैं कि भारत अब केवल रक्षा आयातक नहीं, बल्कि दुनिया के अग्रणी रक्षा उत्पादकों की सूची में शामिल होने की दिशा में अग्रसर है।
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