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दांव या राजनीति: क्या नीतीश दिला पाएंगे पिछड़ों को 65 प्रतिशत आरक्षण?   

बिहार सीएम  नीतीश कुमार ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया  

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सभी राज्यों के नेता मतदाताओं को लुभाने के लिए दांव चल रहे हैं। इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना और आर्थिक सर्वेक्षण पेश किये जाने के बाद विधानसभा में आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने राज्य में जितनी “आबादी उतना अधिकार” के अनुसार आरक्षण को 75 प्रतिशत बढ़ाये जाने का प्रस्ताव रखा। जिसमें, उन्होंने कहा कि पिछड़ा समाज को आबादी के अनुसार आरक्षण मिलना चाहिए। इसलिए पिछड़े वर्ग के लिए लागू 50 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को खत्म कर 65 प्रतिशत किया जाना चाहिए। वहीं, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाला दस प्रतिशत आरक्षण इससे इतर होगा।

मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आर्थिक सर्वे पेश किया। जिसमें यह कहा गया है कि 34 प्रतिशत आबादी की मासिक आय 6000 रुपये से कम है। जबकि राज्य के 42 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। वहीं, 33 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। सर्वे में कहा गया है कि सूबे में सवर्ण में सबसे गरीब भूमिहार हैं। पिछड़ी वर्ग में 34 प्रतिशत यादव समाज गरीब है। वहीं इस सर्वे में सबसे गरीब की श्रेणी में मुसहर समाज के लोग हैं, जो 54 प्रतिशत हैं।

इस दौरान, नीतीश कुमार ने जो आरक्षण का प्रस्ताव रखा है। उसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग ,अति पिछड़ा और पिछड़ा को मिलाकर कुल 65 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव रखा गया है। जबकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाला दस प्रतिशत आरक्षण वह अलग है। वहीं, इस प्रस्ताव में अनुसूचित जाति के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण की मांग की गई है। इन्हें वर्तमान में 17 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। जबकि पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग को 43 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव है। देखा जाए तो पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को फिलहाल 27 प्रतिशत मिलता है।
वहीं, नीतीश कुमार के प्रस्ताव को बीजेपी ने समर्थन किया है।  पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा है कि बिहार में सरकारी नौकरी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की जगह 65 फीसदी किये जाने का बीजेपी समर्थन करती है।
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