इस युद्ध में एक हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। लाखों करोड़ रुपये के हथियार, मिसाइलें और बम-बारूद खर्च किए गए हैं। इन हमलों के कारण ईरान और इस्राइल में जितनी तबाही हुई है, उसको ठीक करने में दोनों देशों को भारी पैसा और समय लगने वाला है। यह नुकसान कितना हुआ है, इसका आकलन संभवतः कुछ समय के बाद ही सामने आ पाएगा। लेकिन हमलों के ये निशान लंबे समय तक दोनों देशों को कष्ट देने वाले हैं।
इस युद्ध की शुरुआत में ही ईरान पर हमले के बाद इस्राइल ने बता दिया था कि इन हमलों का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करना था। हमले के बाद इस्राइल ने बाकायदा इसकी घोषणा की कि वह अपने लक्ष्य में कामयाब हुआ है और उसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को भारी चोट पहुंचाई है।
इस्राइल दावा कर रहा है कि उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है और यह उसकी जीत है। अमेरिका भी पिछले दशक से इसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा था कि वह ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु शक्ति संपन्न होने से रोके। यदि इस्राइली-अमेरिकी हमलों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को चोट पहुंचाने में इतनी सफलता मिल चुकी है तो निश्चय ही यह इस्राइल और अमेरिका के लिए जीत है।
भारत-पाकिस्तान की तरह इस्राइल-ईरान के बीच हुए सीजफायर की घोषणा भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के माध्यम से ही दुनिया को पता चली। ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ है, लेकिन ट्रंप के द्वारा सबसे पहले घोषणा होने से यह संकेत मिलता ही है कि इस सीजफायर में उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। यानी अमेरिका और ट्रंप कहीं न कहीं अपना महत्व स्थापित करने में सफल रहे हैं। इसे अमेरिकी दृष्टिकोण से बढ़त कही जा सकती है।
हालांकि, रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि इस्राइल-अमेरिका के इस दावे को अभी पुख्ता नहीं कहा जा सकता। ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी (रिटायर्ड) ने अमर उजाला को बताया कि यह दावा एक तरफा ही कहा जा सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी ने अभी तक इस तरह की कोई पुष्टि नहीं की है कि ईरान के परमाणु संयंत्रों के आसपास इस तरह का कोई परमाणु विकिरण दर्ज किया गया है।
इसके करीब एक वर्ष पहले ही एमआई ने यह रिपोर्ट दी थी कि ईरान तीन महीने के अंदर ही परमाणु हथियार बनाने में सक्षम है। वह यूरेनियम को 90 प्रतिशत से अधिक संवर्धित करने की क्षमता हासिल कर चुका है। ऐसे में अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इन हमलों में ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह नष्ट किया जा चुका है।
यह दावा स्वयं ईरान के दावे से भी पुष्ट होता है। ईरान ने यह घोषणा कर दुनिया को चौंका दिया था कि उसे इस्राइल-अमेरिका से हमले की आशंका थी और इसी कारण उसने अपनी परमाणु तैयारियों को अलग जगह पर स्थानांतरित कर दिया था। आज की स्थिति में ईरान का दावा ज्यादा सटीक हो सकता है।
अमेरिका दशकों से यह इच्छा रखता रहा है कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो। वह अली खामेनेई की जगह किसी दूसरे के हाथ में ईरान की बागडोर देखने के लिए लगातार अभियान चलाता रहा है। ईरान पर हमले के बाद भी इजरायली ने ईरान की जनता से यही अपील किया था कि वह इस सत्ता को उखाड़ फेंकें और एक नई शुरुआत करें। लेकिन अब जब कि युद्ध समाप्ति की घोषणा हो चुकी है, खामेनेई अपने पद पर डटे हुए हैं। ईरान दावा कर सकता है कि उसने अमेरिकी मंसूबों को असफल कर दिया है।
ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी (रिटायर्ड) ने कहा कि ईरान ने अमेरिकी बेसों पर हमले कर अपनी जनता को जीत जैसा जश्न मनाने का अवसर दे दिया है। तेहरान की सड़कों पर जीत का जश्न मनाया जा रहा है।
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