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इंडसइंड बैंक डेरिवेटिव विसंगती: आरबीआई ने निगरानी समिति को दी संचालन की मंजूरी!

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इंडसइंड बैंक की संचालन व्यवस्था को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बड़ा कदम उठाया है। बैंक के भीतर डेरिवेटिव अकाउंटिंग में सामने आए गंभीर घोटाले और इसके चलते टॉप लेवल इस्तीफों के बाद, अब आरबीआई ने बैंक के कामकाज की निगरानी के लिए एक अंतरिम कार्यकारी समिति को हरी झंडी दे दी है। यह समिति तब तक बैंक के संचालन की ज़िम्मेदारी संभालेगी जब तक कि नया सीईओ और एमडी नियुक्त नहीं हो जाता।

इसका सीधा संबंध इंडसइंड बैंक के मौजूदा प्रबंध निदेशक और सीईओ सुमंत कठपालिया के इस्तीफे से है। उन्होंने बैंक की नेटवर्थ को प्रभावित करने वाली अकाउंटिंग चूक के बाद पद छोड़ दिया। यही नहीं, बैंक के डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने भी अपना इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में बैंक का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से रिक्त हो चुका है।

नई कार्यकारी समिति का नेतृत्व बैंक के बोर्ड चेयरमैन करेंगे। इसके अंतर्गत उपभोक्ता बैंकिंग प्रमुख सौमित्र सेन और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी अनिल राव को दिन-प्रतिदिन के संचालन का जिम्मा सौंपा गया है। यह टीम बोर्ड की निरीक्षण समिति, ऑडिट समिति, नामांकन और पारिश्रमिक समिति तथा जोखिम प्रबंधन समिति के निर्देशों के तहत काम करेगी।

यह कदम सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नहीं है, बल्कि निवेशकों और जमाकर्ताओं के विश्वास को बहाल करने की एक कोशिश भी है। इंडसइंड बैंक ने अपने बयान में साफ कहा कि वह संचालन की स्थिरता और शासन के उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए हर आवश्यक कदम उठा रहा है।

डेरिवेटिव घोटाले का असली चेहरा तब सामने आया जब एक स्वतंत्र ऑडिट ने बैंक के अकाउंटिंग सिस्टम में भारी विसंगतियों की पुष्टि की। जांच में पाया गया कि काल्पनिक लाभ दिखाकर डेरिवेटिव ट्रेडों को गलत तरीके से पेश किया गया था, विशेष रूप से उनके ‘अर्ली टर्मिनेशन’ के मामलों में। इसका सीधा असर बैंक के प्रॉफिट एंड लॉस खाते पर पड़ा और करीब 1,960 करोड़ रुपये का नुकसान सामने आया।

आरबीआई ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए अंतरराष्ट्रीय ऑडिट फर्म ‘ग्रांट थॉर्नटन भारत’ को फोरेंसिक जांच का जिम्मा सौंपा है। गौरतलब है कि यह मुद्दा पहली बार 10 मार्च को सामने आया था, जब बैंक ने खुलासा किया था कि उसकी डेरिवेटिव बुक में एमटीएम घाटे का असर दिसंबर 2024 तक कुल संपत्ति के 2.35% तक हो सकता है, जो लगभग 1,600 करोड़ रुपये का आकलन था।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में गवर्नेंस, पारदर्शिता और फाइनेंशियल कंट्रोल्स की अहमियत को सामने ला दिया है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या अंतरिम समिति बैंक की साख को संभालने में सक्षम होगी, और क्या आरबीआई की सक्रिय निगरानी व्यवस्था इस संकट को एक नई स्थिरता में बदल पाएगी?

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