भारत में पैसिव म्यूचुअल फंड्स (Passive Mutual Funds) तेजी से निवेशकों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। साल 2025 में इस श्रेणी का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) बढ़कर ₹12.2 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, जो 2019 के ₹1.91 लाख करोड़ से छह गुना से अधिक वृद्धि को दर्शाता है। यह जानकारी मोतिलाल ओसवाल म्यूचुअल फंड की ओर से सोमवार को जारी एक सर्वे रिपोर्ट में सामने आई।
सर्वे के मुताबिक, मार्च 2023 से अब तक सिर्फ दो साल में पैसिव फंड्स की एसेट बेस में 1.7 गुना वृद्धि दर्ज की गई है। यह दर्शाता है कि भारतीय निवेशकों के बीच अब कम लागत, पारदर्शिता और विविधीकरण (Diversification) को लेकर रुचि तेजी से बढ़ रही है।
मोतिलाल ओसवाल म्यूचुअल फंड के तीसरे “पैसिव सर्वे 2025” के तहत देशभर के 3,000 से अधिक निवेशकों और 120 से ज्यादा वितरकों (डिस्ट्रिब्यूटर्स) की राय ली गई। इसमें पाया गया कि 76% निवेशक अब इंडेक्स फंड्स या ईटीएफ (Exchange Traded Funds) के बारे में जानते हैं। वहीं, 68% निवेशकों ने कम-से-कम एक पैसिव फंड में निवेश किया है, जो 2023 में 61% था। हालांकि, अभी भी एक-तिहाई निवेशक इस श्रेणी से दूर हैं — उनका कहना है कि वे एक्टिव फंड्स पर अधिक भरोसा करते हैं या पैसिव उत्पादों की जानकारी नहीं रखते।
रिपोर्ट के अनुसार, निवेशक कम लागत, पारदर्शिता, सरलता और स्थिर प्रदर्शन जैसे कारकों को पैसिव फंड चुनने का प्रमुख कारण मानते हैं। वितरकों में भी इसी रुझान की झलक दिखी — 93% वितरक पैसिव फंड्स को समझते हैं, जिनमें से 46% के पास गहरी जानकारी है और 70% वितरक अपने क्लाइंट्स के पोर्टफोलियो में पैसिव फंड्स शामिल करते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश वितरक आने वाले वित्त वर्ष 2025-26 में अपने ग्राहकों के पैसिव निवेश का अनुपात कम से कम 5% बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। फिलहाल, 70% निवेशकों के पास तीन से कम पैसिव फंड हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि फिलहाल यह निवेश श्रेणी सैटेलाइट रोल निभा रही है, न कि मुख्य पोर्टफोलियो घटक।
मोतिलाल ओसवाल एएमसी में पैसिव बिजनेस के प्रमुख प्रतीक ओसवाल ने कहा, “भारत में पैसिव रणनीतियों ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय विकास देखा है। अब ये कुछ चुनिंदा निवेशकों की पसंद तक सीमित नहीं हैं, बल्कि व्यापक निवेशक आधार द्वारा अपनाई जा रही हैं। जागरूकता अब केवल व्यापक इंडेक्स फंड्स तक सीमित नहीं है; निवेशक अब फैक्टर-बेस्ड और इनोवेटिव पैसिव रणनीतियों को भी अपना रहे हैं।”
सर्वे से यह भी सामने आया कि भारतीय निवेशकों का प्राथमिक उद्देश्य वित्तीय स्वतंत्रता है, जबकि रिटायरमेंट प्लानिंग और पोर्टफोलियो विविधीकरण भी प्रमुख कारण हैं। निवेश की अवधि को लेकर पाया गया कि 85% निवेशक तीन साल से अधिक समय तक निवेश बनाए रखते हैं, जबकि 13% निवेशक 1-3 वर्ष तक और केवल 2% एक वर्ष से कम समय तक निवेशित रहते हैं।
निवेश के तरीकों में 57% निवेशक एसआईपी और लंपसम दोनों का मिश्रण पसंद करते हैं, 26% केवल एसआईपी पर भरोसा करते हैं और 17% लंपसम निवेश को प्राथमिकता देते हैं। सूचना के लिए अधिकांश निवेशक वित्तीय वेबसाइट्स, अखबारों, सोशल मीडिया और टेलीविज़न पर निर्भर हैं।
यह सर्वे स्पष्ट संकेत देता है कि भारत में पैसिव इनवेस्टिंग (Passive Investing) अब मुख्यधारा की रणनीति बनती जा रही है, जो अनुशासित, पारदर्शी और दीर्घकालिक संपत्ति निर्माण की दिशा में निवेशकों को नया विकल्प दे रही है।
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