छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में खूंखार नक्सली नेता बसवराजू उर्फ नंबाला केशव राव के मारे जाने के बाद, वामपंथी दलों और शहरी नक्सलियों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। प्रतिबंधित नक्सली संगठन सीपीआई (माओवादी) का महासचिव बसवराजू ₹1.5 करोड़ के इनामी आतंकवादी था, जो 2010 के चिंतलनार हमले में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या और 2013 की झीरम घाटी घटना जैसे नरसंहारों का मास्टरमाइंड था।
21 मई को अबूझमाड़ के जंगलों में हुई मुठभेड़ में बसवराजू समेत 27 नक्सली ढेर किए गए। लेकिन इस कार्रवाई के बाद वामपंथी दलों और शहरी नक्सली तंत्र की ओर से इसे “न्यायेतर हत्या” बताया गया और सरकार की कड़ी आलोचना की गई। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने एक बयान जारी कर बसवराजू की हत्या की निंदा की और इसे “निर्मम तरीके से न्यायेतर हत्या” करार दिया। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के बयान में कहा गया है, “यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार ऑपरेशन कगार को न्यायेतर विनाश अभियान के रूप में चला रही है और नागरिकों की हत्या करने तथा माओवाद से लड़ने के नाम पर कॉर्पोरेट लूट और सैन्यीकरण के खिलाफ आदिवासी विरोध को दबाने का श्रेय ले रही है।”
CPI(ML) strongly condemns the cold-blooded extra-judicial killing of the General Secretary of CPI(Maoist) Comrade Keshav Rao and other Maoist activists and Adivasis in Narayanpur-Bijapur.
From the celebratory post of Union Home Minister Amit Shah, it is clear that the state is… pic.twitter.com/g2YSKnVzEy
— CPIML Liberation (@cpimlliberation) May 21, 2025
सीपीआई(एम) ने नक्सली आतंकवाद के खिलाफ सरकार की कार्रवाई को “हत्या और विनाश की नीति” बताया। विडंबना यह है कि सशस्त्र क्रांति का समर्थन करने वाली माओवादी पार्टी ने सरकार पर मानव जीवन लेने का जश्न मनाने की मानसिकता रखने का आरोप लगाया।
CPIM Polit Bureau statement on the Encounter of 27 #Maoists in Chhattisgarh.
Read the statement at: https://t.co/oqSbJFLxJo pic.twitter.com/z5sxxaDqqa— CPI (M) (@cpimspeak) May 22, 2025
सीपीआई महासचिव डी. राजा ने भी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, “सीपीआई छत्तीसगढ़ में कई आदिवासियों के साथ एक वरिष्ठ माओवादी नेता की निर्मम हत्या की कड़ी निंदा करती है। यह आतंकवाद विरोधी अभियानों की आड़ में की गई न्यायेतर कार्रवाई का एक और उदाहरण है। वैध गिरफ्तारी के बजाय बार-बार घातक बल का इस्तेमाल लोकतांत्रिक मानदंडों और कानून के शासन के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा करता है”
CPI strongly condemns the cold-blooded killing of a senior Maoist leader along with several Adivasis in Chhattisgarh. It is yet another instance of extrajudicial action carried out under the guise of counterinsurgency operations.
The repeated use of lethal force instead of… pic.twitter.com/qWr5HzPlIH
— D. Raja (@ComradeDRaja) May 21, 2025
विडंबना यह है कि वर्षों से लोकतंत्र और संविधान को खारिज करते आए शहरी नक्सली अब उसी संविधान का हवाला देकर माओवादी आतंकियों की कार्रवाई के खिलाफ राज्य की जवाबदेही की मांग कर रहे हैं। बसवराजू, जो कई नरसंहारों का मास्टरमाइंड था, उसे अब ‘आदिवासियों का नायक’ बताया जा रहा है। सरकार के खिलाफ खुला पत्र जारी कर इन तथाकथित ‘कार्यकर्ताओं’ ने नक्सलियों के प्रति नरमी की मांग की और ऑपरेशन रोकने की अपील की।
मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘ऑपरेशन कगार’ ने नक्सलवाद की जड़ों को उखाड़ फेंकने की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। 2015 में जहां देश के 106 जिले नक्सल प्रभावित थे, 2024 तक यह घटकर 18 रह गए हैं, जिनमें से सिर्फ 6 जिले अब गंभीर रूप से प्रभावित हैं। इससे पहले, ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ के तहत भी सुरक्षा बलों ने 1.72 करोड़ रुपये के इनामी 31 नक्सलियों को ढेर किया और 214 ठिकाने नष्ट किए गए।
केंद्रीय गृह मंत्री ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद के पूरी तरह सफाए का लक्ष्य घोषित किया है। हालिया अभियानों की सफलता ने इस दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाया है। जहां एक ओर सरकार और सुरक्षा बल देश को दशकों पुराने नक्सली आतंकवाद से मुक्त कराने की दिशा में तीव्र और निर्णायक कार्रवाई कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कम्युनिस्ट-वामपंथी दल और शहरी नक्सली नरसंहारों के दोषियों को नायक बताने में जुटे हैं। यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा बलों के बलिदान का अपमान है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक भावना और नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती भी है।
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