ईरानी मूल की अभिनेत्री मंदाना करीमी ने हाल ही में एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए भारत पर “बच्चों और नागरिकों की हत्या” जैसे बेहद गंभीर और भ्रामक आरोप लगाए, जो न सिर्फ पूरी तरह झूठे हैं, बल्कि भारत की आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट और सटीक नीति की छवि को जानबूझकर धूमिल करने की कोशिश हैं। जिसके बाद वह जमकर ट्रोल हुई है। हालांकि मंदाना का कहना है की वो भारत को घर मानती है, लेकीन क्या यह सच्चाई है।
मंदाना ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में भारत की कार्रवाई की तुलना इज़राइल के गाजा हमलों और अमेरिका की यमन बमबारी से कर दी — यह न केवल तथ्यात्मक रूप से ग़लत है, बल्कि नैतिक रूप से भी घिनौना है। क्या उन्हें नहीं मालूम कि भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत सिर्फ उन ठिकानों पर कार्रवाई की जो पाकिस्तान या पीओके में सक्रिय आतंकवादियों के थे? भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट रूप से आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया, न कि किसी नागरिक आबादी को।
जब भारत के जवान पुंछ में शहीद होते हैं, जब गुरुद्वारों पर गोलीबारी होती है, तब मंदाना जैसे लोग चुप रहते हैं। लेकिन जब भारत इन हमलों का प्रतिशोध लेता है — वह भी पूरी सावधानी के साथ — तो एक फेक नैरेटिव गढ़ कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जाती है।
मंदाना कहती हैं कि उन्होंने सिर्फ शांति की बात की। लेकिन क्या शांति की बात भारत को “बच्चों की हत्या करने वाला देश” बताकर की जाती है? क्या यह शांति है या झूठ का एजेंडा? उन्होंने अपने स्पष्टीकरण में भले ही यह कहा हो कि वह भारत को प्यार करती हैं, लेकिन मूल सवाल यह है कि जब आतंकियों पर कार्रवाई हो रही थी, तब उन्होंने एकतरफा और झूठा आरोप क्यों लगाया?
Mandana Karimi @manizhe is Iranian.
She lives in India & earns from Indian movie industry and Indian Brands.
Now, she is criticising #OperationSindoor.
Requesting @MEAIndia to cancel her visa and deport her back to Iran. pic.twitter.com/1QRAqmLcql
— Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) May 7, 2025
सोशल मीडिया पर यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि एक विदेशी नागरिक होकर मंदाना भारत के खिलाफ इस तरह की फर्जी खबरें फैलाने की हिम्मत कैसे कर सकती हैं। 16 साल इस देश में रहना एक बात है, लेकिन उस देश की संप्रभुता और सेना का अपमान करना दूसरी बात है — और यह माफ करने लायक नहीं।
मंदाना करीमी को यह समझना चाहिए कि भारत कोई ‘वॉर मशीन’ नहीं है, बल्कि संविधान, अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों में विश्वास करने वाला देश है। लेकिन जब आतंकवाद सिर उठाता है, तो भारत चुप नहीं बैठता — और न ही बैठना चाहिए। झूठ के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सीमाओं पर नहीं, शब्दों में भी लड़ी जाती है — और मंदाना की गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी उसी लड़ाई का एक नया मोर्चा बन चुकी है।
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