पुलिस ने कहा है कि आरोपियों के खिलाफ मजबूत दस्तावेजी और तकनीकी सबूत हैं, जो साबित करते हैं कि उन्होंने सांप्रदायिक आधार पर पूरे देश में दंगे भड़काने की योजना बनाई थी।
पुलिस के हलफनामे के अनुसार, उमर खालिद और उनके साथियों ने साजिश रची, उसे बढ़ावा दिया और उसे अमल में लाया। इसका मकसद सांप्रदायिक सद्भाव को तोड़कर देश की संप्रभुता और एकता पर हमला करना था। उन्होंने भीड़ को न सिर्फ सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने के लिए उकसाया, बल्कि सशस्त्र विद्रोह के लिए भी भड़काया।
चैट और अन्य रिकॉर्ड से साफ है कि यह साजिश डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के समय अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने और सीएए विरोध को मुस्लिम समुदाय के नरसंहार के रूप में पेश करके इसे वैश्विक मुद्दा बनाने के लिए रची गई थी।
इस पूर्व नियोजित साजिश के परिणामस्वरूप 53 लोगों की मौत हुई और सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा। अकेले दिल्ली में 753 एफआईआर दर्ज की गईं। सबूत बताते हैं कि इस साजिश को पूरे देश में दोहराने की कोशिश की गई।
पुलिस के मुताबिक, आरोपियों का मकसद सिर्फ राजनीतिक असहमति जताना नहीं था, बल्कि हिंसा भड़काकर देश के आर्थिक और सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाना था। दंगों की इस आपराधिक साजिश का अंतिम लक्ष्य हिंसा के जरिए शासन परिवर्तन करना था।
सुप्रीम कोर्ट 31 अक्टूबर को उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पुलिस ने हलफनामे में मांग की है कि जमानत याचिकाएं खारिज की जाएं, क्योंकि आरोप गंभीर हैं और सबूत मजबूत हैं।
दिल्ली दंगे फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए थे, जिसमें 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। उमर खालिद को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वे तब से जेल में हैं। कई मानवाधिकार संगठनों ने उनकी गिरफ्तारी को राजनीतिक बताया है, जबकि पुलिस इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला मानती है।
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