अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक एजेंडे ने वैश्विक व्यापार समीकरणों में हलचल मचा दी है। इसी क्रम में भारत के साथ संभावित व्यापार समझौते की खबर न केवल वाशिंगटन के लिए, बल्कि नई दिल्ली के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि बन सकती है। ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट की ताजा टिप्पणी ने इस संभावना को बल दिया है कि भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करने वाला पहला देश बन सकता है।
यह संकेत ऐसे समय में आया है जब ट्रंप अपने कार्यकाल के 100वें दिन के करीब पहुंच रहे हैं और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को मूर्त रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। भारत को लेकर बेसेंट का स्पष्ट कहना कि “व्यापार में बाधाएं कम हैं, मुद्रा स्थिर है और सरकारी सब्सिडी न्यूनतम है,” इस रिश्ते में संभावनाओं को और मजबूती देता है।
हालांकि चेतावनी भी साफ है — अगर जुलाई तक कोई द्विपक्षीय समझौता नहीं हुआ, तो भारत को 26 प्रतिशत टैरिफ की चुनौती झेलनी पड़ सकती है। यह स्थिति भारत के लिए असहज होगी, खासतौर पर ऐसे समय में जब निर्यात बढ़ाने और वैश्विक बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की उसकी महत्वाकांक्षा स्पष्ट है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के बीच हालिया बातचीत को आगे बढ़ाते हुए, दोनों देशों ने अब व्यापार बातचीत के नियम तय कर लिए हैं। यह पहल वैश्विक मंच पर भारत-अमेरिका साझेदारी को नया आयाम दे सकती है, बशर्ते वार्ता केवल घोषणाओं तक सीमित न रहे, बल्कि ठोस नतीजों तक पहुंचे।
इस बदलते परिदृश्य में भारत को चाहिए कि वह अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए तेज़ी से रणनीति बनाए, ताकि वह ट्रंप प्रशासन के बदलते व्यापार मानचित्र में अपने लिए स्थायी और सम्मानजनक स्थान सुनिश्चित कर सके। कुल मिलाकर, आने वाले कुछ महीने भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों के भविष्य की दिशा तय करने वाले साबित हो सकते हैं।
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