ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने के इज़राइली मिशन ‘ऑपरेशन नार्निया’ ने दुनियाभर के रणनीतिक हलकों को चौंका दिया है। 12 दिन तक चले इस गुप्त सैन्य अभियान में इज़राइल ने ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों और आईआरजीसी (IRGC) के केंद्रीय नेतृत्व पर सटीक हमला कर उन्हें खत्म कर दिया। हालांकि अमेरिका ने युद्ध में शामिल होकर ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने का श्रेय खुद को दिया, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार ‘ऑपरेशन नार्निया’ की असली सफलता ‘लक्ष्य आधारित मानव-निष्कासन’ रही — जिसमें इज़राइली खुफिया एजेंसियों ने वर्षों की योजना और सूचनाओं के आधार पर ईरानी वैज्ञानिकों को निशाना बनाया।
इज़राइली इंटेलिजेंस ने ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों को चार स्तरों में वर्गीकृत किया था। जिनके पास सर्वाधिक सैन्य ज्ञान था और जिन्हें बदलना सबसे कठिन था, उन्हें प्राथमिकता सूची में रखा गया। इन्हीं वैज्ञानिकों को ऑपरेशन के दौरान टारगेट किया गया।
यरुशलम पोस्ट के मुताबिक मारे गए 9 प्रमुख वैज्ञानिकों के नाम इस प्रकार हैं:
- फ़ेरेदौन अब्बासी – न्यूक्लियर इंजीनियरिंग एक्सपर्ट
- मोहम्मद महदी तेहरांची – फिजिक्स एक्सपर्ट
- अकबर मतलाली जादेह – केमिकल इंजीनियर
- सईद बेराजी – मटीरियल्स इंजीनियर
- आमिर हसन फकाही – फिजिक्स एक्सपर्ट
- अब्दुल हामिद मिनुशहर – रिएक्टर फिजिक्स विशेषज्ञ
- मंसूर असगरी – फिजिक्स विशेषज्ञ
- अहमद रज़ा दावलपारकी दरयानी – न्यूक्लियर इंजीनियर
- अली बाखायी कथेरेमी – मैकेनिकल इंजीनियर
कैसे बनी योजना?
एक वरिष्ठ IDF अधिकारी के अनुसार, “जनवरी में जब किसी समाधान तक नहीं पहुंचा जा सका, तब 120 सैन्य और वायुसेना अधिकारियों को यूनिट 8200 के एक विशेष केंद्र में बुलाया गया। निर्णय लिया गया कि अब लक्ष्य ईरान की वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय करना और वैज्ञानिकों को टारगेट करना है।” इसके तहत ईरान के एयर डिफेंस बेस, इंटेलिजेंस नेटवर्क, और एन्क्रिप्टेड संचार को पहले निष्क्रिय किया गया। इसके बाद ऑपरेशन ‘राइजिंग लायन’ नामक हवाई हमलों का चरण शुरू हुआ, जिसके साथ-साथ ऑपरेशन नार्निया ने गुप्त लक्ष्यों को खत्म करना शुरू किया।
यह ‘ऑपरेशन नार्निया’ कोई अचानक बना मिशन नहीं था बल्की 1990 के दशक में जब इज़राइल ने ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पहचाना, तभी से यह योजना शुरू हो गई थी। इज़राइल ने ईरान के भीतर एक गुप्त नेटवर्क खड़ा किया, जिसने कई वैज्ञानिकों की हत्या और यूरेनियम केंद्रों पर हमले किए। 2008 में ऑपरेशन ‘ग्लोरियस स्पार्टन’ के तहत 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स ने ग्रीस में जाकर एक नकली हमले का अभ्यास किया — जो सीधे तौर पर ईरान पर संभावित हमले की तैयारी थी।
इसके बाद इज़राइल ने धीरे-धीरे हमास और हिज़्बुल्लाह की ताकत को कमजोर किया, और सीरिया में ईरान समर्थक सरकार के पतन के बाद सीरियाई एयरस्पेस तक खुला रास्ता हासिल किया। इससे फुल-स्केल स्ट्राइक की सबसे बड़ी बाधा खत्म हो गई।
‘ऑपरेशन नार्निया’ इस बात का प्रतीक है कि युद्ध केवल बमों से नहीं, बल्की होश संभाल लक्ष्य की ओर लगन से बढ़ने पर जीते जा सकते है। यह एक ऐसा मिशन था जो नामुमकिन लगता था, लेकिन इज़राइल ने इसे हकीकत बना दिया — और अब इसे युद्ध इतिहास की सबसे सटीक ऑपरेशन स्ट्राइक में गिना जाएगा।
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