पाकिस्तान में सिंधु नदी पर केंद्र सरकार की नहर परियोजना को लेकर सियासी और सामाजिक उबाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब इस परियोजना के खिलाफ सिंध प्रांत के वकीलों ने मोर्चा संभालते हुए अदालतों के अनिश्चितकालीन बहिष्कार का एलान कर दिया है। बबरलोई बाइपास पर वकीलों का धरना पिछले सप्ताह से जारी है, जिसे अब और विस्तार देने की घोषणा की गई है। विरोध की आंच अब सिंध के कोने-कोने तक फैलने लगी है।
कराची बार एसोसिएशन और सिंध हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारी इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं। कराची बार के अध्यक्ष आमिर नवाज ने मीडिया से कहा कि सिंध के सभी बार संगठनों की बैठक में तय किया गया है कि अब सभी वकील अदालतों का बहिष्कार करेंगे, और यदि 72 घंटों के भीतर नहर परियोजना को रद्द नहीं किया गया, तो रेलवे पटरियां अवरुद्ध कर दी जाएंगी। उन्होंने चेताया कि अगर सरकार झुकी नहीं, तो वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) से सरकार से समर्थन वापस लेने की मांग करेंगे।
धरना सिर्फ वकीलों तक सीमित नहीं है। चांदका मेडिकल कॉलेज के छात्र, “सभी दलों के छात्र कार्यकर्ता समिति” के बैनर तले कॉलेज परिसर में प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह परियोजना न केवल सिंध की उपजाऊ जमीन को नष्ट करेगी, बल्कि सिंधु डेल्टा, पर्यावरण और हजारों किसानों की आजीविका को भी संकट में डालेगी। पाकिस्तान पैरामेडिकल स्टाफ एसोसिएशन ने भी इसे “सिंध को रेगिस्तान में बदलने की साजिश” करार दिया है।
हैदराबाद के एसएचसीबीए अध्यक्ष वकील अयाज हुसैन तुनियो ने ऐलान किया कि समयसीमा समाप्त होते ही सुक्कुर की रोहरी रेलवे पटरियों को अवरुद्ध किया जाएगा। साथ ही, अंतर-प्रांतीय यातायात को बंद करने की रणनीति पर भी विचार किया गया है। तुनियो ने अपने धरना स्थल पर सुरक्षा की कमी को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि किसी अप्रिय घटना की जिम्मेदारी सुक्कुर के डीआईजी और खैरपुर के एसएसपी की होगी।
यह संघर्ष उस समय और अधिक गहराता नजर आ रहा है जब केंद्र सरकार ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव के तहत 3.3 अरब डॉलर की लागत से छह नहरों के निर्माण की योजना पर अमल शुरू करने को तैयार है। सरकार का दावा है कि इससे दक्षिण पंजाब की 12 लाख एकड़ बंजर भूमि सिंचित होगी, लेकिन सिंध सरकार को आशंका है कि इससे सिंध को मिलने वाला सिंधु जल का हिस्सा कम हो जाएगा, जिससे पूरा प्रांत सूखे की कगार पर पहुंच सकता है।
धरना अब सिर्फ प्रदर्शन नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है। वकील, डॉक्टर, छात्र, और अब आम जनता — सभी एक सुर में कह रहे हैं कि अगर सिंध को सूखा पड़ा, तो उसका असर सिर्फ खेती पर नहीं, बल्कि पूरे पाकिस्तान की सामाजिक स्थिरता पर पड़ेगा। सवाल अब सिर्फ एक नहर का नहीं, बल्कि एक प्रांत की पहचान और हक़ का है — और यह संघर्ष अभी थमा नहीं है।
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