शिक्षा केवल बच्चों को पढ़ना-लिखना या गणना सिखाने तक सीमित नहीं है। यह उनके व्यक्तित्व, भावनात्मक स्वास्थ्य, शारीरिक विकास, बौद्धिक क्षमता और आंतरिक खुशी के हर पहलू को संवारने का माध्यम भी है, आधुनिक जगत में इसे ही जीनियस होना कहा गया है। शुरुआती वर्षों में, जब बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, पंचकोषा सिद्धांत इस समग्र विकास के लिए एक प्रभावी मार्गदर्शिका साबित होता है।
पंचकोषा क्या है?
पंचकोषा का अर्थ है “पाँच परतें” या “पाँच आवरण”, जो प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मानव अस्तित्व के बहुआयामी पहलुओं को दर्शाते हैं। ये पांच कोष हैं:
अन्नमय कोष – शारीरिक शरीर
प्राणमय कोष – जीवन ऊर्जा
मनोमय कोष – विचार और भावनाएँ
विज्ञानमय कोष – बुद्धि और ज्ञान
आनंदमय कोष – आनंद और खुशी
ये सभी कोष बच्चों के आपस में जुड़े हुए होते हैं और जीवन के लिए मजबूत आधार तैयार करते हैं।
पंचकोषा और प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा:
प्रारंभिक वर्ष बच्चों के लिए ऐसे होते हैं जैसे मुलायम मिट्टी जिसे किसी भी दिशा में आकार दिया जा सकता है। परंपरागत शिक्षा प्रणाली अकादमिक विकास पर अधिक ध्यान देती है और भावनात्मक, शारीरिक और रचनात्मक विकास की अनदेखी करती है। पंचकोषा सिद्धांत इसे संतुलित करता है। यह NEP 2020 में वर्णित समग्र शिक्षा और आधारभूत साक्षरता के लक्ष्य से भी मेल खाता है।
अन्नमय कोष (शारीरिक):
अन्नमय कोष शारीरिक स्वास्थ्य, पोषण और गतिविधियों से संबंधित है। बच्चों के लिए एक स्वस्थ शरीर का होना बेहद जरूरी है क्योंकि यह उनके मस्तिष्क और सीखने की क्षमता पर सीधे प्रभाव डालता है। इसे प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों में रोज़ाना योग, सरल स्ट्रेच, खेलकूद और पौष्टिक भोजन को शामिल किया जा सकता है। जब शरीर स्वस्थ और सक्रिय रहता है, तो बच्चों की एकाग्रता और ऊर्जा भी बेहतर रहती है।
प्राणमय कोष (ऊर्जा):
प्राणमय कोष जीवन ऊर्जा और उत्साह का प्रतिनिधित्व करता है। बच्चों में प्राकृतिक ऊर्जा अधिक होती है और इसे संतुलित करना उनके ध्यान और व्यवहार के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसे विकसित करने के लिए साधारण सांस की तकनीक, भागदौड़ या प्राकृतिक परिवेश में खेल, और छोटे माइंडफुलनेस सत्र बेहद प्रभावी होते हैं। उदाहरण के लिए, पांच मिनट की गहरी साँसों की शुरुआत कक्षा को शांत करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है।
मनोमय कोष (मानसिक और भावनात्मक):
मनोमय कोष विचारों, भावनाओं और सामाजिक संबंधों से जुड़ा होता है। यह वह परत है जहाँ बच्चे अपने आसपास की दुनिया को समझना और भावनाओं को व्यक्त करना सीखते हैं। इसे प्रोत्साहित करने के लिए कहानी सुनाना, भूमिका-निर्माण और दैनिक सर्कल टाइम जैसी गतिविधियाँ मददगार होती हैं। उदाहरण के तौर पर, बच्चों से पूछना कि “आज तुम्हें क्या खुश कर गया?” उनके भावनात्मक आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है।
विज्ञानमय कोष (बौद्धिक):
विज्ञानमय कोष बच्चों की जिज्ञासा, सोचने और समस्या-समाधान की क्षमता से संबंधित है। इस परत को सक्रिय करने के लिए खेल आधारित गतिविधियाँ जैसे ब्लॉक निर्माण, पहेली और खुले प्रश्नों के माध्यम से सीखना लाभकारी होता है। थीम आधारित शिक्षा, जैसे जानवरों के बारे में गाने, कला और कहानी, बच्चों में विश्लेषणात्मक और रचनात्मक सोच को बढ़ाती है और उनके बौद्धिक विकास को मजबूत करती है।
आनंदमय कोष (आनंद):
आनंदमय कोष सीखने की खुशी और संतोष से जुड़ा होता है। खुश बच्चे ही बेहतर सीखते हैं और उनकी यादें लंबे समय तक सुरक्षित रहती हैं। इसे प्रोत्साहित करने के लिए चित्रकला, नृत्य, संगीत और कृतज्ञता अभ्यास जैसे रचनात्मक गतिविधियाँ अपनाई जा सकती हैं। इससे बच्चे सीखने की प्रक्रिया को आनंदमय अनुभव के रूप में देखते हैं और उनके अंदर सीखने का प्रेम विकसित होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार पंचकोषा सिद्धांत को व्यवहार में लाने के लिए इसे NEP 2020 के खेल-आधारित और समग्र विकास लक्ष्यों के अनुरूप योजना में शामिल किया जाना चाहिए। शिक्षकों के लिए योग, माइंडफुलनेस और सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा पर कार्यशालाएँ आयोजित करना फायदेमंद होगा। इसके साथ ही, थीम आधारित रचनात्मक पाठ्यक्रम तैयार करके बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास के सभी पहलुओं को शामिल किया जा सकता है।
पंचकोषा सिद्धांत के आधार पर शिक्षा देने से बच्चों में सहनशीलता, जिज्ञासा और सहानुभूति जैसी जीवन कौशल मजबूत होती हैं। ध्यान और सीखने की क्षमता में सुधार आता है, तनाव कम होता है और स्कूल का अनुभव आनंदमय बनता है।
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