22 तारीख को पहलगाम का इस्लामी हमला हुआ, और आज तक़रीबन सभी हिंदू इस हमले को दुर्लक्षित करने में लगे है—इसकी यादें मिटाने में लगे है। दरअसल यह काम हिंदू समाज को खुदसे करने की कोई जरूरत नहीं है। यह समाज पहले से ही शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस की समस्या से झुंज़ रहा है। समाज न भी भूले तो हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के बैक्टीरिया के कारण सेकुलरिज्म का एंसिफिलैटीज तो फैला ही है। यह एंसिफिलैटीज आगे भी आपकी डरावनी यादें मिटाएगा, जो इस्लामी हमलों से जुडी है।
कुछ लोग भारत सरकार द्वारा पाकिस्तानियों को 48 घंटे में देश छोड़ने का अल्टीमेटम जो दिया गया उसका विरोध कर रहें है। कतई लीब्रण्डु सोच के लोगों का कहना है की पाकिस्तानी आम मुसलमानों को तकलीफ देने की कोई जरूरत नहीं है—एक तो वो संख्या में कम है और इनमें से कई इलाज करवाने आए है। यह इतनी मूर्खतापूर्ण बात है जैसे आप के घर में आग लगी है, और आप कह रहें है इसमें आग का क्या दोष है? इन लोगों की दया पाकिस्तान के लिए इतनी क्यों उमड़ती है, जबकि अपने देश के नागरिकों पर इनका यह प्रेम नदारद रहता है कुछ समझ नहीं आता। देश की सुरक्षा और सम्मान के आगे भावुकता का यह नाटक क्या ही बताया जाए।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान में शादी करके गई लड़कियां भी अटारी बॉर्डर पर खड़े होकर सुरक्षा दलों से भीड़ रहीं है मानों नल्के पर पानी के लिए झगड़ रही हो—कैमरे के सामने आकर इसी देश के प्रधानमंत्री के लिए गाली गलौज की जा रही है। अगर किसी भारतीय लड़की ने पाकिस्तानी से शादी की है तो उसके दो ही कारण हो सकते है—या तो भारत में लड़के नहीं है या फिर उसके बाप को पाकिस्तान से प्रेम ज्यादा है।
मीडिया भी यह नैरेटिव खूब पेल रहा है की–कोई हार्ट पेशंट है–कोई किडनी पेशंट है। उन्हें रुकने की परमिशन मिलनी चाहिए। 26 भारतीयों को धर्म पूछकर गोलियों से भून दिया गया। और पाकिस्तानी चाहते है उनपर दया दिखाई जाए। पिछले २-3 महीनें में इसी पाकिस्तान ने चाय से मक्खी निकालकर फेंकी जाए इस तरह 1 लाख अफगानी निर्वासितों को निकाल फेंका था—-थंड, धुप, भुखमरी, बीमारी कोई कारण सोचे बिना। यहां भारत में किसी को बचाने की गुहार क्यों लगानी है? पाकिस्तानी नागरिक अपने देश में जाए और अपनी मिलटरी से पूछे की भारत के वापस भेजने के बाद! नके बच्चे की मौत का जिम्मेदार कौन होगा ?
पाकिस्तान से जो लोग भारत में आते जाते रहते है—वो बड़ी संख्या अंदर आते ही गायब हो जाते है। वो कहां जाकर रहते है ? फिर उन्हें अपनी बेटियां कौन ब्याह देता है—उनके दस्तावेज कैसे बनते है? उनके धंदे पानी कहां से चल रहें है—किसी बात का पता नहीं होता। एजेंसियों में बैठे अधिकारी भी उनको ढूंढने के कष्ट नहीं करते—चल रहा है, चलने दो अपने कौन सा बाप का माल जा रहा है—–यही एटीट्यूड होता है। सालों से यही होता आया है। यह एक बड़ा मौका था, जब पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों को निकाल फेंकने के लिए एजेंसियों ने शर्ट की बाहें खींच लेनी चाहिए थी। पाकिस्तानी मुसलमान खुद तो यहां अवैध है ही, लेकीन आतंकियों को भी यही लोग पनाह देतें है।
भारत सरकार के 48 घंटे के अल्टीमेटम के बाद महाराष्ट्र के जलगांव में 1200 पाकिस्तानी पाए गए। जलगांव कोई महाराष्ट्र का मेनलैंड नहीं है—यहां क्या कर रहे है पाकिस्तानी ? इसका किसी के पास जवाब नहीं है। असल में जब पहलगाम में 26 हिंदुओ को चुनचुनकर मारा जाता है तब इन पाकिस्तानी मुसलमानों में कपकपी भरनी चाहिए की यह लोग शत्रुओं के देश में ठहरे है और यहां के हिंदू उन्हें जिंदा वापिस जाने देंगे या नहीं—- यह सोचकर तो इनकी आधी जान निकल ही जानी चाहिए। लेकीन यह लोग इस देश में आराम से रह है, और जब इनको खदेड़ा जा रहा है, तो यहां के प्रधानमंत्री को तक गाली दे रहें है। यह आत्मविश्वास कहां से आता है ?
2001 भारत की संसद पर हमला, 9 लोगों की मौत—
2005 दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, 62 लोगों की मौत २०० घायल—
2006 वारणासी ब्लास्ट, 15 की मौत 100 घायल—
2008 सीआरपीएफ कैम्प पर हमला, ८ की मौत—
26 /11 का मुंबई आतंकी हमला, 166 लोगो की मौत 300 घायल—
2019 पुलवामा हमला, 46 सैनिकों की मौत—
2024 का रईसी का हमला, 9 लोगों की मौत 33 घायल —
और परसों 22 अप्रैल को 28 लोगों की मौत!
यह तो बस वो हमलें है जो 21 वी सदी में किए गए है—-20 वी सदी की लिस्ट और भी लंबी है। संभवता शार्ट टर्म मैमोरी लॉस के चलते हिंदू समाज इन हमलों को भूल गया होगा इसीलिए हमने याद दिलाए।
इन हमलों में दो बातें कॉमन है—एक यह की इन हमलों के पीछे पाकिस्तान और उसकी आर्मी का हाथ रहा है—–दूसरा यह की यह हमलें मुसलमानों ने काफिरों पर किए थे। वो अलग बात है की सेकुलर नेताओ ने हमेशा इन आतंकी हमलों को मजहब के परे बताने की कोशिश की है— एग्जाम्पल के लिए जब मुंबई बोम्ब ब्लास्ट हुए थे, तो बाराह ब्लास्ट होने के बाद शरद पवार ने मुस्लिम मोहल्ले में 13 वे बॉम्ब ब्लास्ट का झूठ गढ़ा था, वो भी सिर्फ इसीलिए की मुसलमानों की इमेज बचाई जा सके।
आज भी जब पहलगाम में इस्लामी आतंकी हमला हुआ है—-तब शरद पवार साहब ऐसे ही डेलिब्रेटली झूठ बोल गए की आतंकियों ने पुरषों को गोली मारी महिलाओं को जाने दिया।
ऐसे ही लीब्रण्डु कश्मीर से भाईचारे की पिंपड़ी बजा रहें है। कोई सैयद हुसैन शाह को शहीद करार दे रहा है— कोई आतंकवाद का धर्म नहीं होता यह बात डिक्लेयर कर रहा है। यह सब हिंदू मुस्लिम भाईचारे का ढोंग बरक़रार रखने के लिए है। कोई इस देश में मुसलमानों से अकाउंटेबिलिटी नहीं मांगता।
पाकिस्तानियों को कॉन्फिडेंस यहीं से आ रहा है। एक तो हिंदू हर दूसरे महीनें भूल जाता है की उ उसके लोगों कब कहां नरसंहार किया जा रहा है। दूसरी बात हमले के बावजूद मुसलमानों की इस देश में कोई एकाउंटेबिलिटी नहीं है। उल्टा हमले के बाद रोबर्ट कहता है की मुसलमानों को दबाया गया इसीलिए यह हमला किया गया।
हिंदू समाज की शार्ट टर्म मैमोरी लॉस की यह बीमारी एक दिन उसे ग़जनी बनाकर ही मानेगी। बांग्लादेशीयों के मुकाबले आज देश में पाकिस्तानी कम है लेकीन उनकी संख्या भी लाखों में है। भाजपा सरकार की कितनी भी इच्छाशक्ति हो भारतीय एजेंसियां बांग्लादेशियों और पाकिस्तानियो को देश से खदेड़ने के मूड में नहीं लगती, उनमें न इच्छाशक्ति है न गंभीरता है। वरना पिछले 48 गुजरात में पुलिस की इच्छाशक्ती से साढ़े पांचसो बांग्लादेशी पकडे जा चुके है।
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